बिना मठ के मठाधीश मेरे पसंदीदा
सुरेश चिपलूनकर
नीरज गोस्वामी
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मेरे पसंदीदा ब्लोगर जो अपने मन की लिखते हैं
सुरेश चिपलूनकर - गर्व से कहो हम हिन्दू हैं ब्लॉग जगत का सच्चा सिपाही
नीरज गोस्वाई - कविता उनकी जान हैं शब्दों के कारीगर
गौतम राजरिशी - मेरा सैनिक भाई , सदा सलामत रहो तुम
कंचन चौहान - हाँ तुम वैसी हो जैसा मैने सोचा था
पंकज सुबीर - ग़ज़ल गुरु के पद पर आसीन
अजीत वाडनेकर - शब्दों के शहंशाह
हरकीरत हकीर - कविता की मालकिन
मीनाक्षी धन्वन्तरी - प्रेम प्यासी गगरी की धरोहरण
ममता टी वी - संस्मरण यात्रा पर हमेशा
विचार शून्य - अगड़म बगड़म मे बहुत हैं दम
हिमांशु पाण्डेय - तुमको अपने घर की सब किताबे दे देने का करता रहा मन
दिस्क्लैमेर
पसंद की कोई सीढ़ी या पायदान नहीं होता हैं
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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दिव्य स्टाईल
ReplyDeleteहर नारी में कुछ तो दिव्यांश होता ही है ..दोष नहीं है किसी का
चलो… "निरपेक्षता" (धर्म वाली नहीं) बनाए रखने का कहीं तो कोई Recognition मिला…।
ReplyDeleteहालांकि अपना भी एक मठ है और वह भी "खुल्लमखुल्ला" (कोई दबा-छिपा एजेण्डा नहीं)। एक ही मठ यानी, "राष्ट्रवादी मठ", सबका खुले दिल से स्वागत है "राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व" के मठ में… :) :) :)
========
(नोट - हम इस मठ के एक अति-सामान्य कार्यकर्ता हैं, मठाधीश नहीं… क्योंकि इस मठ में कोई मठाधीश ही नहीं होता, सब सेवक होते हैं) :)
:) :) :)....
ReplyDeleteRIGHT CHOICE.......
ReplyDeletePRANAM.
अकिंचन मात्र हूँ मैं......प्रेम प्यासी गगरी उठाए हैं धरोहर के रूप में...प्रेम ही सत्य है माना सदा ...सत्य कड़वा विष जैसा..लेकिन उसी के मंथन से प्रेम अमृत सा मिलता है...
ReplyDeleteओशो को कभी पढ़ा था..लिखना चाहती थी लिखूँगी कभी....ज्ञान का मार्गी या सत्य का खोजी बड़ी प्रखर बुद्धि का प्रयोग करता है. तलवार की धार की तरह काटता चलता है.निषेध का मार्ग है सत्य का मार्ग...प्रेम का मार्ग कुछ भी तोड़ता नहीं, काटता नहीं....अपने अन्दर के राग को सेतु बना लेता है...प्रेम के छोटे से दीप की रोशनी में गहन अन्धकार को पार करता जाता है......
ईर्ष्या हो रही है सबसे :)
ReplyDeleteये अच्छा हे..
ReplyDeleteमुझे खेद है के ब्लॉग जगत में इतने वर्षों रहने के बावजूद रचना जी मेरा आपके ब्लॉग पर आज आना हुआ वो भी किसी प्रिय ने आपका लिंक भेजा तभी...आपको मेरा लिखा पसंद आता है जान कर बहुत अच्छा लगा...बिना मठ के भी कोई मठाधीश हो सकता है आज जाना :-).
ReplyDeleteआपकी सूची में सम्मलित बहुत से सदस्य मेरे अपनों जैसे हैं.
नीरज
वैसे तो सारे ही मेरे भी पसंदीदा है.. लेकिन इनमे से चार लोग एक ही गुरुकुल से जुड़े है.. क्या गुरुकुल और मठ में कोई डिफ़रेंस है मैम??? :)
ReplyDeleteकाफी कुछ जानने को मिला आपकी इस पोस्ट से
ReplyDeleteवाह, तालियाँ. बहुत से मुझे भी प्रिय हैं.
ReplyDeleteघुघूती बासूती
कई नाम परिचित हैं.
ReplyDeleteनीरज जी की तो टिप्पणियाँ भी बहुत ही आकर्षक लगती हैं ...जैसे हिमालय से टप-टप टपकते ग्लेशियर की एक धारा. मुझे ईर्ष्या होती है नीरज जी से ......मैं इतना विनम्र क्यों नहीं हूँ......लगता है ऊपर वाले ने लीवर की जगह दिल लगा दिया है नीरज जी के सिस्टम में. ...पूरी छाती में दिल ही दिल है ......