क़ोई भी लड़ाई छोटी नहीं होती
ट्रेन में सफ़र करते समय अगर आप अपने सह यात्री को शराब पीते देखते हैं तो
टी टी से कहे
आपस में सब लोग मिल कर तुरंत हल्ला मचा कर कहे
तब भी ना सुने तो शिकायत पुस्तिका में अपनी शिकायत दर्ज करे और उस सीट का नंबर अवश्य दे क्युकी बहुत बात टी टी की मिली भगत से ये सब होता हैं और वो सह यात्री रेलवे विभाग के किसी कर्मचारी का रिश्तेदार होता हैं
इस पर कुछ ना हो तो चैन खीच कर गाडी रुकवा दे और टी टी से कहे की अगले स्टेशन के स्टेशन मास्टर को फ़ोन करे ताकि रेलवे पुलिस वहाँ आकर उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर सके
और अगर ये सब ना हो सके तो एक डिब्बे में कम से कम ५० यात्री होते ही हैं वो सब उस व्यक्ति की पिटाई करके किसी भी शौचालाए में उसको बंद कर दे और सारे रास्ते वही बंद रहने दे
आखरी पढाव पर उत्तर कर उसको रेलवे पुलिस को सौप दे और शिकायत उसके खिलाफ नहीं टी टी के खिलाफ दर्ज करवा दे
आप की छोटी सी लड़ाई कहीं ना कहीं क़ोई बदलाव लाती जरुर हैं लेकिन आप का कुछ न करना और केवल ये कहना सिस्टम गलत हैं क़ोई बदलाव नहीं ला सकता
हा जो भी करे सावधानी से करे और कानून के दायरे के अन्दर करने की कोशिश करे
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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आप का कुछ न करना और केवल ये कहना सिस्टम गलत हैं क़ोई बदलाव नहीं ला सकता
ReplyDeleteहा जो भी करे सावधानी से करे और कानून के दायरे के अन्दर करने की कोशिश करे
क्या किसी की पिटाई करना कानून के दायरे में आता है? यह तो कानूनन गलत है। कानून हाथ में लेना है।
ReplyDeleteवैसे भी ट्रेन के शौचालयों में कुण्डी बाहर नहीं अन्दर होती है। किसी दिन ट्रेन में सफर करके देखना।
अपनी सुरक्षा में उठा हुआ हाथ / हथियार कानून के दायरे में ही आता हैं
ReplyDelete५० मुसाफिर में से किसी एक के पास चैन और ताला भी होता जिसको बाहर से बाँध कर बंद कर दिया जाता हैं
कभी ट्रेन में सफ़र करना जैसी बाते कहना फिजूल हैं क्युकी जिसको हम जानते नहीं उस पर ये सब लिखना अपना अज्ञान दर्शाता हैं और आप के ही ब्लॉग पर पढ़ा था नीरज जाट की शौचालाए के और भी बड़े प्रयोग होते हैं जब आप रेल में यात्रा करते हैं कमेन्ट नहीं किया था पर पढ़ कर मानसिकता जरुर समझ आगई थी
shilpa mehta has left a new comment on your post "जो भी करे सावधानी से करे और कानून के दायरे के अन्द...":
ReplyDeleteयह समस्या तो बहुत देखने में आती है | इसके अलावा, मैंने तो न्यूज़ पर सुना था कि पब्लिक प्लेसेज में (जिसमे सड़क, दुकानें , सिनेमाघर आदि भी शामिल हैं ) स्मोकिंग भी मना है | क्या पता चल सकता है कि यह कानून सच में हैं या नहीं ?
किन्तु कई लोगों को कई बार टोकने के बाद भी कोई असर नहीं होता दिखा (मैं रिपीट ओफेन्दर्स की बात कर रही हूँ ) | और आपने जो ४-५ तरीके सुझाये हैं - कहीं इस कार्यवाही से हम ही न मुसीबत में पड़ जाएँ, क्योंकि क़ानून के हिसाब से तो क़ानून अपने हाथ में लेना भी जुर्म है ? पिटाई करना या शौचालय में बंद करना या चेन खींचना , तो हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर होगा |
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shilpa
ReplyDeleteaap kaa kament email me thaa par waese nahin milaa blog par so ab publish kar diyaa
apni rakhsa kae liyae kiyaa gayaa koi bhi kaarya gaer kaanuni nahin hotaa haen
aur step by step karna chahiyae kyuki kuchh naa karnae sae jyada nuksaan hota hae
true - if we dont do anything - that too is like supporting the people who are doing it ...
ReplyDeleteokay shall follow next time -noted for future!
ReplyDeleteजो भी करें, कानूनी ढंग से और लगन से करें। काम एक न एक दिन जरूर होगा।
ReplyDelete------
चोंच में आकाश समा लेने की जिद..
इब्ने सफी के मायाजाल से कोई नहीं बच पाया।