सचिन ने वन डे क्रिकेट से संन्यास ले लिया हैं , पकिस्तान के साथ शुरू होने वाली सीरिज का हिस्सा वो नहीं होंगे . ये वही सचिन हैं जिन्होने कारगिल के बाद पकिस्तान के साथ मैच के लिये मना किया था
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
December 23, 2012
November 21, 2012
सभी देशवासियों को बधाई
चलिये सरकार जग गयी और 26/11 के पांच साल पूरे होने से पहले ही कसाब को फांसी हो ही गयी . जो मुकदमा फास्ट ट्रैक होना चाहिये था उसको इतना लम्बा समय लग ही गया लेकिन अंत भला सो सब भला
सभी देशवासियों को बधाई
सभी देशवासियों को बधाई
October 26, 2012
जिस दिन भी किसी भी धर्म का कोई उत्सव हो उस दिन उस धर्म के विरुद्ध कुछ भी लिखना केवल दुर्भावना को ही जन्म देगा
मेरा कमेन्ट यहाँ
पिछली होली पर जाकिर ने पेड काटने के खिलाफ तर्क आधारित पोस्ट लगाई थी और मैने तथा कुछ और लोगो ने आपत्ति की थी की त्यौहार पर इस प्रकार की पोस्ट देने से सद्भावना की जगह दुर्भावना मन में आती हैं . वही इस पोस्ट के लिये भी कहूँगी की इस पोस्ट को लगाने का समय बिलकुल गलत हैं क्युकी कल बकरीद हैं और इस प्रकार की पोस्ट का कोई औचित्य नहीं हैं .
हर धर्म के अपने नियम कानून हैं और वो उसी हिसाब से चलता हैं , कम से कम जिस दिन भी किसी भी धर्म का कोई उत्सव हो उस दिन उस धर्म के विरुद्ध कुछ भी लिखना केवल दुर्भावना को ही जन्म देगा . आप ईद पर लिखो , वो दिवाली पर लिखे आप रमजान के खिलाफ लिखो वो नवरात्र के खिलाफ लिखे क्या हासिल होगा ?? पोस्ट इस समय हटा ली जाये तो बेहतर होगा और सही समय पर दुबारा दी जाये
पिछली होली पर जाकिर ने पेड काटने के खिलाफ तर्क आधारित पोस्ट लगाई थी और मैने तथा कुछ और लोगो ने आपत्ति की थी की त्यौहार पर इस प्रकार की पोस्ट देने से सद्भावना की जगह दुर्भावना मन में आती हैं . वही इस पोस्ट के लिये भी कहूँगी की इस पोस्ट को लगाने का समय बिलकुल गलत हैं क्युकी कल बकरीद हैं और इस प्रकार की पोस्ट का कोई औचित्य नहीं हैं .
हर धर्म के अपने नियम कानून हैं और वो उसी हिसाब से चलता हैं , कम से कम जिस दिन भी किसी भी धर्म का कोई उत्सव हो उस दिन उस धर्म के विरुद्ध कुछ भी लिखना केवल दुर्भावना को ही जन्म देगा . आप ईद पर लिखो , वो दिवाली पर लिखे आप रमजान के खिलाफ लिखो वो नवरात्र के खिलाफ लिखे क्या हासिल होगा ?? पोस्ट इस समय हटा ली जाये तो बेहतर होगा और सही समय पर दुबारा दी जाये
मेरा कमेन्ट
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नर्स शब्द अगर आप खोजे तो गूगल नर्सिंग शब्द को प्राथमिकता देता हैं . नर्स शब्द का अर्थ हैं
इस मे कहीं भी स्त्री लिंग या पुल्लिंग का विभाजन नहीं हैं . भारत में स्त्रीलिंग और पुल्लिंग में जेंडर न्यूट्रल शब्दों को विभाजित करने की परम्परा हैं जो की ब्लॉग जगत में बहुत शिद्दत से सामने आती हैं . नेट पर ये सुविधा हैं की हम अपनी जानकारी तुरंत बढ़ा सकते हैं .
नारियों को काम करने की सुविधा बहुत बाद में इस समाज में मिली हैं और वो भी बहुत मुश्किलों से और बार बार उनको कसौटी पर रगड़ कर देखा जाता हैं .
किसी भी दफ्तर में अगर एक ही समय एक स्त्री और पुरुष को काम दिया जाता हैं तो नज़र नारी पर राखी जाती हैं , कहीं फ़ोन पर बात तो नहीं कर रही , कही देर से तो नहीं आयी , कहीं आपस में गप तो नहीं मार रही , पुरुष के मुकाबले घर जल्दी तो नहीं जा रही .
क्यूँ ?? क्युकी नारी को ऑफिस मे देखना यानी किसी पुरुष की नौकरी छीन जाना होता हैं . जमाने से वार्ड बौय की जिम्मेदारी होती हैं मरीजों का मल मूत्र साफ़ करना , पॉट लगाना , उनको नाश्ता कराना लेकिन कितने करते हैं ?? आया होती हैं महिला वार्ड में उनका भी यही कार्य हैं पर कितनी करती हैं , सब मरीजों के घर के लोगो से ही अपेक्षित होता हैं . सरकारी अस्पताल हो या प्राइवेट सब जगह एक ही चलन हैं .
सेवा भाव स्त्री या पुरुष के लिये अलग अलग नहीं होता हैं आपकी या हमारी सोच में लिंग विभाजित काम हैं ये . स्त्री सेवा ज्यादा सहज कर सकती हैं ये क्यूँ सोचा जाता हैं ??? उस से इतने अपेक्षा ही क्यूँ हैं . सेवा पुरुष भी उतनी ही कर सकता हैं ,
नर्सिंग एक प्रोफेशन हैं , नौकरी हैं , ट्रेनिंग के बाद होती हैं इस लिये उसके नियम स्त्री और परुष दोनों के लिये बराबर हैं . जैसे डॉक्टर के . मरीज बस मरीज हैं उसकी देख्बहाल करना नर्स का काम मात्र हैं इसको सेवा कहना गलत हैं ,
सेवा भाव वाली बात तब होती थी जब कोई किसी युद्ध भूमि में सैनिको की सेवा के लिये नर्स बन कर जाता था / थी और वहाँ बिना पैसे के अपनी सेवाये देता था .
सेवाए यानी सर्विसेस .
अस्पताल में काम करने वाले व्यक्ति केवल और केवल नौकरी करते है सेवा का कोई लेना देना होता नहीं हैं
बाकी आप को लगता हैं महिला कुछ नहीं करती बस होड़ करती हैं आपस में की कौन कम से कम काम करे तो ये आप की सोच गलत हैं , क्युकी अगर वो आप से ज्यादा कमा रही हैं तो कहीं ना कहीं आप से ज्यादा काबिल होंगी { अब ये ना कहे की महिलाओ की क़ाबलियत क्या हैं हमें पता हैं } .
बच्चो को स्नेह और आशीष आशा हैं स्वास्थ लाभ कर रहे होंगे .
और सरकारी अस्पताल में शिकायत पुस्तिका होती हैं , शिकायत दर्ज की या नहीं . सरकारी नौकरी का मतलब हम सब को पता हैं . जब मिल जाए तो एश हैं , बैठे बैठे खाने का जुगाड़ , बुढापे में पेंशन { साथ में सीनियर सिटिजन का रिबेट } अगर सेवा काल में मृत्यु तो परिजन को नौकरी उफ़ इतनी सुविधा में तो हर स्त्री पुरुष काम करना बंद कर ही देता हैं :)
नर्स शब्द अगर आप खोजे तो गूगल नर्सिंग शब्द को प्राथमिकता देता हैं . नर्स शब्द का अर्थ हैं
nurse/nərs/
Noun: |
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Verb: |
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Synonyms: |
noun. nanny - sister - nursemaid - wet nurse
verb. suckle - tend - attend - nourish - cherish - nurture
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इस मे कहीं भी स्त्री लिंग या पुल्लिंग का विभाजन नहीं हैं . भारत में स्त्रीलिंग और पुल्लिंग में जेंडर न्यूट्रल शब्दों को विभाजित करने की परम्परा हैं जो की ब्लॉग जगत में बहुत शिद्दत से सामने आती हैं . नेट पर ये सुविधा हैं की हम अपनी जानकारी तुरंत बढ़ा सकते हैं .
नारियों को काम करने की सुविधा बहुत बाद में इस समाज में मिली हैं और वो भी बहुत मुश्किलों से और बार बार उनको कसौटी पर रगड़ कर देखा जाता हैं .
किसी भी दफ्तर में अगर एक ही समय एक स्त्री और पुरुष को काम दिया जाता हैं तो नज़र नारी पर राखी जाती हैं , कहीं फ़ोन पर बात तो नहीं कर रही , कही देर से तो नहीं आयी , कहीं आपस में गप तो नहीं मार रही , पुरुष के मुकाबले घर जल्दी तो नहीं जा रही .
क्यूँ ?? क्युकी नारी को ऑफिस मे देखना यानी किसी पुरुष की नौकरी छीन जाना होता हैं . जमाने से वार्ड बौय की जिम्मेदारी होती हैं मरीजों का मल मूत्र साफ़ करना , पॉट लगाना , उनको नाश्ता कराना लेकिन कितने करते हैं ?? आया होती हैं महिला वार्ड में उनका भी यही कार्य हैं पर कितनी करती हैं , सब मरीजों के घर के लोगो से ही अपेक्षित होता हैं . सरकारी अस्पताल हो या प्राइवेट सब जगह एक ही चलन हैं .
सेवा भाव स्त्री या पुरुष के लिये अलग अलग नहीं होता हैं आपकी या हमारी सोच में लिंग विभाजित काम हैं ये . स्त्री सेवा ज्यादा सहज कर सकती हैं ये क्यूँ सोचा जाता हैं ??? उस से इतने अपेक्षा ही क्यूँ हैं . सेवा पुरुष भी उतनी ही कर सकता हैं ,
नर्सिंग एक प्रोफेशन हैं , नौकरी हैं , ट्रेनिंग के बाद होती हैं इस लिये उसके नियम स्त्री और परुष दोनों के लिये बराबर हैं . जैसे डॉक्टर के . मरीज बस मरीज हैं उसकी देख्बहाल करना नर्स का काम मात्र हैं इसको सेवा कहना गलत हैं ,
सेवा भाव वाली बात तब होती थी जब कोई किसी युद्ध भूमि में सैनिको की सेवा के लिये नर्स बन कर जाता था / थी और वहाँ बिना पैसे के अपनी सेवाये देता था .
सेवाए यानी सर्विसेस .
अस्पताल में काम करने वाले व्यक्ति केवल और केवल नौकरी करते है सेवा का कोई लेना देना होता नहीं हैं
बाकी आप को लगता हैं महिला कुछ नहीं करती बस होड़ करती हैं आपस में की कौन कम से कम काम करे तो ये आप की सोच गलत हैं , क्युकी अगर वो आप से ज्यादा कमा रही हैं तो कहीं ना कहीं आप से ज्यादा काबिल होंगी { अब ये ना कहे की महिलाओ की क़ाबलियत क्या हैं हमें पता हैं } .
बच्चो को स्नेह और आशीष आशा हैं स्वास्थ लाभ कर रहे होंगे .
और सरकारी अस्पताल में शिकायत पुस्तिका होती हैं , शिकायत दर्ज की या नहीं . सरकारी नौकरी का मतलब हम सब को पता हैं . जब मिल जाए तो एश हैं , बैठे बैठे खाने का जुगाड़ , बुढापे में पेंशन { साथ में सीनियर सिटिजन का रिबेट } अगर सेवा काल में मृत्यु तो परिजन को नौकरी उफ़ इतनी सुविधा में तो हर स्त्री पुरुष काम करना बंद कर ही देता हैं :)
September 30, 2012
भारतीये होने में फक्र हैं हमे और उससे भी ज्यादा फक्र हैं की हम अपने ही देश में हैं
मेरा कमेन्ट यहाँ
लड़का और लड़की एक दूसरे के पूरक नहीं हैं , पूरक शब्द का प्रयोग केवल और केवल पति पत्नी के लिये होता हैं .
बच्चे दोनों बराबर होते हैं होने भी चाहिये . एक की तुलना कभी दूसरे से नहीं होनी चाहिये , मेरी बेटी बेटे जैसी हैं ये कह कर लोग बेटी को दोयम का दर्जा देते हैं और बेटे को उस से एक सीढ़ी ऊपर रखते हैं
बच्चो को लिंग ज्ञान उनके अभिभावक देते हैं , बच्चे नक़ल करते हैं और उनकी उम्र पर ये एक खिलवाड़ हैं
बड़े होने पर संविधान उनको अपनी पसंद का पहनावा पहनने का हक़ देता हैं , पहनावा अगर सुरुचि पूर्ण हैं तो किसी की पसंद पर आपत्ति नहीं की जा सकती हैं
जैसे लडकियां पेंट पहन सकते हैं लडके स्कर्ट पहन सकते हैं
अभी हॉवर्ड में ड्रेस कोड महज इस लिये ख़तम किया गया हैं क्युकी अब वहाँ ट्रांस जेंडर भी पढते हैं , अब हावर्ड में लिंग आधारित पहनावा पहनना जरुरी नहीं हैं
और आधुनिकता और आँख की शर्म इत्यादि हर नयी पीढ़ी को पुरानी पीढ़ी समझाती ही आयी हैं
हर नयी पीढ़ी एक दिन पुरानी होती हैं और उस दिन वो अपनी नयी पीढ़ी को वही सीखती हैं जो उनकी पुरानी पीढ़ी ने उनको सिखाया था
लिव इन , गे , लिस्बन , इत्यादि सब पहले भी था और अब भी हैं , तब चोरी छुपे था , अब कानून सही हैं
प्रकृति के नियम के विरुद्ध कुछ हो ही नहीं सकता हैं क्युकी प्रकृति स सक्षम हैं अपने को सही रखने के लिये
@आधुनिक होने का मतलब है सोच का खुलापन, ना कि खुद की पहचान बदलकर विदेशी परिवेश को अपना कर दिखावे की होड़ करना। आप सभी को क्या लगता है ???? पल्लवी जी आप खुद विदेश में रहती हैं , फिर भी आप कई पोस्ट पर यही लिख चुकी हैं , कई बार मन किया पूछने का मन किया हैं की आप वापस आकर भारत में रहकर , हम सब के साथ क्यूँ नहीं अपने देश को और बेहतर बनती हैं , क्यों नहीं अपने विदेशी परिवेश को तज कर अपनी भारतीय होने को भारत में रह कर एन्जॉय करती हैं
आप को हमेशा ऐसा क्यूँ लगता हैं की हम सब विदेशियों को कॉपी करके अपनी संस्कृति भूल रहे हैं और आप जो यहाँ रह भी नहीं रही वो हम सब से ज्यादा देशी हैं और हम सबको देशी बने रहने के लिये कह सकती हैं
आप अगर वहाँ खुश हैं तो हम भी यहाँ खुश हैं और भारतीये होने में फक्र हैं हमे और उससे भी ज्यादा फक्र हैं की हम अपने ही देश में हैं
लड़का और लड़की एक दूसरे के पूरक नहीं हैं , पूरक शब्द का प्रयोग केवल और केवल पति पत्नी के लिये होता हैं .
बच्चे दोनों बराबर होते हैं होने भी चाहिये . एक की तुलना कभी दूसरे से नहीं होनी चाहिये , मेरी बेटी बेटे जैसी हैं ये कह कर लोग बेटी को दोयम का दर्जा देते हैं और बेटे को उस से एक सीढ़ी ऊपर रखते हैं
बच्चो को लिंग ज्ञान उनके अभिभावक देते हैं , बच्चे नक़ल करते हैं और उनकी उम्र पर ये एक खिलवाड़ हैं
बड़े होने पर संविधान उनको अपनी पसंद का पहनावा पहनने का हक़ देता हैं , पहनावा अगर सुरुचि पूर्ण हैं तो किसी की पसंद पर आपत्ति नहीं की जा सकती हैं
जैसे लडकियां पेंट पहन सकते हैं लडके स्कर्ट पहन सकते हैं
अभी हॉवर्ड में ड्रेस कोड महज इस लिये ख़तम किया गया हैं क्युकी अब वहाँ ट्रांस जेंडर भी पढते हैं , अब हावर्ड में लिंग आधारित पहनावा पहनना जरुरी नहीं हैं
और आधुनिकता और आँख की शर्म इत्यादि हर नयी पीढ़ी को पुरानी पीढ़ी समझाती ही आयी हैं
हर नयी पीढ़ी एक दिन पुरानी होती हैं और उस दिन वो अपनी नयी पीढ़ी को वही सीखती हैं जो उनकी पुरानी पीढ़ी ने उनको सिखाया था
लिव इन , गे , लिस्बन , इत्यादि सब पहले भी था और अब भी हैं , तब चोरी छुपे था , अब कानून सही हैं
प्रकृति के नियम के विरुद्ध कुछ हो ही नहीं सकता हैं क्युकी प्रकृति स सक्षम हैं अपने को सही रखने के लिये
@आधुनिक होने का मतलब है सोच का खुलापन, ना कि खुद की पहचान बदलकर विदेशी परिवेश को अपना कर दिखावे की होड़ करना। आप सभी को क्या लगता है ???? पल्लवी जी आप खुद विदेश में रहती हैं , फिर भी आप कई पोस्ट पर यही लिख चुकी हैं , कई बार मन किया पूछने का मन किया हैं की आप वापस आकर भारत में रहकर , हम सब के साथ क्यूँ नहीं अपने देश को और बेहतर बनती हैं , क्यों नहीं अपने विदेशी परिवेश को तज कर अपनी भारतीय होने को भारत में रह कर एन्जॉय करती हैं
आप को हमेशा ऐसा क्यूँ लगता हैं की हम सब विदेशियों को कॉपी करके अपनी संस्कृति भूल रहे हैं और आप जो यहाँ रह भी नहीं रही वो हम सब से ज्यादा देशी हैं और हम सबको देशी बने रहने के लिये कह सकती हैं
आप अगर वहाँ खुश हैं तो हम भी यहाँ खुश हैं और भारतीये होने में फक्र हैं हमे और उससे भी ज्यादा फक्र हैं की हम अपने ही देश में हैं
September 29, 2012
Proficient Satisfied Lotus Means TUG OF WAR
क्या ज़माना आ गया हैं इतने इतने proficient लोग lotus की टहनी को डंडा समझ कर satisfy हो जाते हैं . रस्सी जल गयी बल नहीं गए . सांप सांपिन के अंडे गिनने में लग गए . अब बताओ सांप ने कहीं भी बिल बनाया हो , सांपिन ने कहीं में अंडे दिये हो आप को क्यूँ तकलीफ हैं . आप अपनी proficiency से सांप को रस्सी समझो या रस्सी को सांप क्या फरक पड़ता हैं . कम से सांप को तो नहीं पड़ता हाँ सांपिन ने देख लिया तो जन्म जन्म तक बदला लेती हैं . और भगवान् ना करे {वैसे proficient लोग भगवान् को मानते ही नहीं हैं} सांपिन ऐसा करे .
जितने भी proficient हैं और जो lotus के साथ satisfied हैं उनसब की जानकारी के लिये बता दूँ एक बड़ा ही popular tatoo बनाया जाता हैं जिसमे lotus के चारो तरफ एक सांप लिपटा होता हैं .
जिसका अर्थ हैं जो दिखता हैं वैसा होता नहीं हैं lotus की सुन्दरता के अन्दर भी danger हो सकता हैं .
किसी ने रस्सी को सांप समझ लिया पीट दिया उसकी मर्ज़ी लेकिन आप के घर में आकर पीट दिया और आप देखते रहे , अब हिम्मत की दाद देनी चाहिये किसी ? उसकी जो आप के घर में आ कर पीट पाट कर चलागया और आप रस्सी रस्सी चिल्लाते रहे . चिंदी चिन्दी करदी गयी बिचारी रस्सी जो आपके भरोसे थी और आप तमाशा देखते रहे और फिर भी satisfied हैं .
वैसे tug ऑफ़ war में वही जीतता हैं जिसका खिलाड़ी तगड़ा होता हैं और रस्सी के छोर पर बंधा होता हैं , सब के हाथ से रस्सी छुट भी जाए तब भी अंगद की तरह उसका पाँव नहीं हिलता .
अपनी अपनी रस्सी तो संभलती नहीं है आज कल के proficient लोगो से और दूसरो के घरो के बिम्ब और प्रतीक की चिंता खाए जाती हैं . इतनी लापरवाही सही नहीं हैं , जिनके हवाले देश की सीमाए हो वो अपना घर ना संभाल सके तो LOC पर क्या होगा . अब ceasefire नहीं होता हैं आज कल , वो ज़माने ख़तम हुए
बाकी कुछ विध्वंसक मानते मानते दिव्य-रचना कह कर satisfied होते हैं आखिर सच हमेशा सच ही होता हैं ,विध्वंसक रचना ही दिव्य होती हैं क्युकी विध्वंस के बाद ही सृजन होता हैं
अल्प ज्ञान हैं फिर भी satisfaction हैं अपना क्या . ??
डिस्क्लेमर
इस पोस्ट इस ब्लॉग जगत से ही लेना देना हैं
कमेन्ट मोडरेशन सक्षम हैं
जितने भी proficient हैं और जो lotus के साथ satisfied हैं उनसब की जानकारी के लिये बता दूँ एक बड़ा ही popular tatoo बनाया जाता हैं जिसमे lotus के चारो तरफ एक सांप लिपटा होता हैं .
जिसका अर्थ हैं जो दिखता हैं वैसा होता नहीं हैं lotus की सुन्दरता के अन्दर भी danger हो सकता हैं .
किसी ने रस्सी को सांप समझ लिया पीट दिया उसकी मर्ज़ी लेकिन आप के घर में आकर पीट दिया और आप देखते रहे , अब हिम्मत की दाद देनी चाहिये किसी ? उसकी जो आप के घर में आ कर पीट पाट कर चलागया और आप रस्सी रस्सी चिल्लाते रहे . चिंदी चिन्दी करदी गयी बिचारी रस्सी जो आपके भरोसे थी और आप तमाशा देखते रहे और फिर भी satisfied हैं .
वैसे tug ऑफ़ war में वही जीतता हैं जिसका खिलाड़ी तगड़ा होता हैं और रस्सी के छोर पर बंधा होता हैं , सब के हाथ से रस्सी छुट भी जाए तब भी अंगद की तरह उसका पाँव नहीं हिलता .
अपनी अपनी रस्सी तो संभलती नहीं है आज कल के proficient लोगो से और दूसरो के घरो के बिम्ब और प्रतीक की चिंता खाए जाती हैं . इतनी लापरवाही सही नहीं हैं , जिनके हवाले देश की सीमाए हो वो अपना घर ना संभाल सके तो LOC पर क्या होगा . अब ceasefire नहीं होता हैं आज कल , वो ज़माने ख़तम हुए
बाकी कुछ विध्वंसक मानते मानते दिव्य-रचना कह कर satisfied होते हैं आखिर सच हमेशा सच ही होता हैं ,विध्वंसक रचना ही दिव्य होती हैं क्युकी विध्वंस के बाद ही सृजन होता हैं
अल्प ज्ञान हैं फिर भी satisfaction हैं अपना क्या . ??
डिस्क्लेमर
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September 27, 2012
मेरा कमेन्ट
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वाणी जी
हिंदी की किताबे , कहानी , कविता और भी बहुत कुछ सब सहयोग की राशि से ही छप रहा हैं , कम से कम पिछले २० साल से तो मै अपने आस पास देख रही हूँ . कारण ये नहीं हैं की प्रकाशक के पास क़ोई आर्थिक संकट हैं . कारण ये हैं की पाठक नहीं हैं जो किताब को खरीद कर पढ़े , विश्विद्यालय में लाइब्ररी के पास फंड नहीं होते , जगह नहीं होती सो वहाँ भी बिक्री कम ही हैं , अब या तो सरकारी अनुदान मिलता हैं और किताब छपती हैं { इसके लिये तगड़ा पी आर चाहिये और ये जाना माना तथ्य हैं की अनुदान राशि में कुछ उसका होता हैं जो अनुदान दिलवाता हैं } सहयोग से प्रकाशक छपता हैं पर बेचता नहीं हैं . ये भी काम लेखक का हैं . जब तक आप में सामर्थ्य हैं आर्थिक आप ये कर सकती हैं , इस में कुछ भी गलत नहीं हैं , छप जाए तो लोगो को बाँट सकती हैं सब कहेगे , मेरी प्रति कहां हैं , यानी अगर आप ने ५००० की न्यूनतम राशि दी हैं और बदले में १०० किताब आप को मिल गयी हैं तो आप को बस एक ही सुख हैं लोगो को किताब गिफ्ट करने का आप को क़ोई आर्थिक लाभ नहीं हैं , जबकि पब्लिशर के पास जो प्रतियां बचती हैं और अगर वो उनको बेच लेता हैं तो ये उसकी कमाई हैं . ज्यादा तर पूरा खर्चा आप की दी राशि से ही निकल आता हैं
किताब छप कर प्रिंट मीडिया में आने से एक अचीवमेंट की अनुभूति होती हैं जो अपने आप में बहुत हैं , लेकिन किताब की शेल्फ लाइफ बहुत कम हैं . अगर आप भी क़ोई किताब खरीद कर लाती हैं कितनी बार पढती हैं , फिर उसका क्या करती हैं ? मेरे घर हिंदी पुस्तकों की एक लाइब्ररी थी , माँ - पिता की बनाई हुई , कहां कहां की किताबे नहीं हैं , फिर वो लाइब्ररी से एक अम्बार होगया , अब एक ढेर हैं अलमारी में बंद . और जानती हूँ एक दिन केवल और केवल कबाड़ की तरह बेचना पड़ेगा मुझे . बहुत कष्ट होगा पर क्या ऑप्शन हैं मेरे पास ? मेरा विषय हिंदी नहीं है , क़ोई लाइब्ररी लेने को तैयार नहीं हैं , जिन विषयों पर वो किताबे हैं वो विषय आज कल छात्र नहीं पढते . कितने लोगो से में संपर्क कर चुकी एक ही जवाब होता हैं घर में इतनी जगह ही नहीं हैं . एक और परिवार के पास भी इसी तरह से एक अम्बार हैं , गठरी बना टांड पर चढ़ा .
बस एक बात और
@कशमकश सी रहती है कि व्यर्थ वाग्जाल में फंसकर अपनी साहित्यिक अभिरुचि को बाधित करना क्या उचित है .
हिंदी ब्लॉग लेखन हिंदी साहित्यकारो का अड्डा ना बने तब ही सार्थक ब्लॉग लेखन होगा , हिंदी साहित्यकारों में कितना वाद विवाद हैं और कितनी रंजिशे होती हैं पता नहीं हैं आप कितना जानती हैं , सबको लगता हैं वो सबसे अच्छा लिखते हैं . ब्लॉग पर साहित्य लिखिये , जरुर लिखिये , क्युकी इस फ्री मीडियम के जरिये आप अपनी किताब , इ बुक बना सकती हैं , कोशिश करिये की आप पढने के लिये पाठक से एक राशि ले .
पर ब्लॉग लेखन को "व्यर्थ वाग्जाल" कह कर उन सब को अपने से { यानी वो सब जो अपने को हिंदी का साहित्यकार मानते हैं और ब्लॉग पर हिंदी सुधारने और उसको आगे बढ़ाने और दूसरे ब्लोग्गर की हिंदी सही करने , के लिये ही ब्लॉग लेखन करते हैं } छोटा ना माने .
ब्लॉग मीडियम विचारों की अभिव्यक्ति हैं , बहुत से लेखक और अपने को साहित्यकार समझने वाले लोग इस से केवल इस लिये जुड़े हैं क्युकी उनको कहीं क़ोई जानता ही नहीं हैं .
हैरी पोट्टर की लेखिका रोव्लिंग कभी एक ऐसी गृहणी थी जो पैसे पैसे को मुहताज थी , अपनी पहली पाण्डुलिपि एक रेस्तोरांत में बैठ के लिखी थी , छप गयी आज करोडो में खेल रही हैं , पहली , व्यस्को के लिये , किताब उनकी आज आ रही हैं और पहले ही बेस्ट सेलर हो चुकी हैं . साहित्यकार फिर भी नहीं समझी जाती हैं .
हिंदी में क़ोई ऐसा लेखक आप बता सकती हैं जिसकी किताब की प्रतियां , बिना मार्केट में आये ही बिक चुकी हो ???
मुद्दा किताब छापने से नहीं ख़तम होता हैं , मुद्दा है क्या आप के पास ऐसे पाठक हैं जो आप के लिखे को खरीद कर पढ़े . ????
अन्यथा वो ५००० हज़ार जो आप खर्च कर रही उस से मिली १०० प्रतियां आप कहां रखेगी , उसकी जगह बनाये और अगर विमोचन इत्यादि करवाना हो तो भी पैसे तैयार रखे , हाँ दोस्तों की पार्टी भी बनती हैं किताब छपने के बाद , सो मेरा निमंत्रण भेजना ना भूले और ज्यादा लिखे को कम समझे :)
वाणी जी
हिंदी की किताबे , कहानी , कविता और भी बहुत कुछ सब सहयोग की राशि से ही छप रहा हैं , कम से कम पिछले २० साल से तो मै अपने आस पास देख रही हूँ . कारण ये नहीं हैं की प्रकाशक के पास क़ोई आर्थिक संकट हैं . कारण ये हैं की पाठक नहीं हैं जो किताब को खरीद कर पढ़े , विश्विद्यालय में लाइब्ररी के पास फंड नहीं होते , जगह नहीं होती सो वहाँ भी बिक्री कम ही हैं , अब या तो सरकारी अनुदान मिलता हैं और किताब छपती हैं { इसके लिये तगड़ा पी आर चाहिये और ये जाना माना तथ्य हैं की अनुदान राशि में कुछ उसका होता हैं जो अनुदान दिलवाता हैं } सहयोग से प्रकाशक छपता हैं पर बेचता नहीं हैं . ये भी काम लेखक का हैं . जब तक आप में सामर्थ्य हैं आर्थिक आप ये कर सकती हैं , इस में कुछ भी गलत नहीं हैं , छप जाए तो लोगो को बाँट सकती हैं सब कहेगे , मेरी प्रति कहां हैं , यानी अगर आप ने ५००० की न्यूनतम राशि दी हैं और बदले में १०० किताब आप को मिल गयी हैं तो आप को बस एक ही सुख हैं लोगो को किताब गिफ्ट करने का आप को क़ोई आर्थिक लाभ नहीं हैं , जबकि पब्लिशर के पास जो प्रतियां बचती हैं और अगर वो उनको बेच लेता हैं तो ये उसकी कमाई हैं . ज्यादा तर पूरा खर्चा आप की दी राशि से ही निकल आता हैं
किताब छप कर प्रिंट मीडिया में आने से एक अचीवमेंट की अनुभूति होती हैं जो अपने आप में बहुत हैं , लेकिन किताब की शेल्फ लाइफ बहुत कम हैं . अगर आप भी क़ोई किताब खरीद कर लाती हैं कितनी बार पढती हैं , फिर उसका क्या करती हैं ? मेरे घर हिंदी पुस्तकों की एक लाइब्ररी थी , माँ - पिता की बनाई हुई , कहां कहां की किताबे नहीं हैं , फिर वो लाइब्ररी से एक अम्बार होगया , अब एक ढेर हैं अलमारी में बंद . और जानती हूँ एक दिन केवल और केवल कबाड़ की तरह बेचना पड़ेगा मुझे . बहुत कष्ट होगा पर क्या ऑप्शन हैं मेरे पास ? मेरा विषय हिंदी नहीं है , क़ोई लाइब्ररी लेने को तैयार नहीं हैं , जिन विषयों पर वो किताबे हैं वो विषय आज कल छात्र नहीं पढते . कितने लोगो से में संपर्क कर चुकी एक ही जवाब होता हैं घर में इतनी जगह ही नहीं हैं . एक और परिवार के पास भी इसी तरह से एक अम्बार हैं , गठरी बना टांड पर चढ़ा .
बस एक बात और
@कशमकश सी रहती है कि व्यर्थ वाग्जाल में फंसकर अपनी साहित्यिक अभिरुचि को बाधित करना क्या उचित है .
हिंदी ब्लॉग लेखन हिंदी साहित्यकारो का अड्डा ना बने तब ही सार्थक ब्लॉग लेखन होगा , हिंदी साहित्यकारों में कितना वाद विवाद हैं और कितनी रंजिशे होती हैं पता नहीं हैं आप कितना जानती हैं , सबको लगता हैं वो सबसे अच्छा लिखते हैं . ब्लॉग पर साहित्य लिखिये , जरुर लिखिये , क्युकी इस फ्री मीडियम के जरिये आप अपनी किताब , इ बुक बना सकती हैं , कोशिश करिये की आप पढने के लिये पाठक से एक राशि ले .
पर ब्लॉग लेखन को "व्यर्थ वाग्जाल" कह कर उन सब को अपने से { यानी वो सब जो अपने को हिंदी का साहित्यकार मानते हैं और ब्लॉग पर हिंदी सुधारने और उसको आगे बढ़ाने और दूसरे ब्लोग्गर की हिंदी सही करने , के लिये ही ब्लॉग लेखन करते हैं } छोटा ना माने .
ब्लॉग मीडियम विचारों की अभिव्यक्ति हैं , बहुत से लेखक और अपने को साहित्यकार समझने वाले लोग इस से केवल इस लिये जुड़े हैं क्युकी उनको कहीं क़ोई जानता ही नहीं हैं .
हैरी पोट्टर की लेखिका रोव्लिंग कभी एक ऐसी गृहणी थी जो पैसे पैसे को मुहताज थी , अपनी पहली पाण्डुलिपि एक रेस्तोरांत में बैठ के लिखी थी , छप गयी आज करोडो में खेल रही हैं , पहली , व्यस्को के लिये , किताब उनकी आज आ रही हैं और पहले ही बेस्ट सेलर हो चुकी हैं . साहित्यकार फिर भी नहीं समझी जाती हैं .
हिंदी में क़ोई ऐसा लेखक आप बता सकती हैं जिसकी किताब की प्रतियां , बिना मार्केट में आये ही बिक चुकी हो ???
मुद्दा किताब छापने से नहीं ख़तम होता हैं , मुद्दा है क्या आप के पास ऐसे पाठक हैं जो आप के लिखे को खरीद कर पढ़े . ????
अन्यथा वो ५००० हज़ार जो आप खर्च कर रही उस से मिली १०० प्रतियां आप कहां रखेगी , उसकी जगह बनाये और अगर विमोचन इत्यादि करवाना हो तो भी पैसे तैयार रखे , हाँ दोस्तों की पार्टी भी बनती हैं किताब छपने के बाद , सो मेरा निमंत्रण भेजना ना भूले और ज्यादा लिखे को कम समझे :)
September 11, 2012
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का अर्थ देश , संविधान , तिरंगा , कानून . संसद का अपमान करना कतई नहीं हो सकता हैं
क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देश / तिरंगा / संविधान / कानून / संसद से ऊपर हैं ??
क्या हम को अधिकार हैं की अगर हम व्यवस्था से नाराज हैं , अगर हम संसद में बैठे हुए उन लोग से नाराज हैं जिनको चुन कर हम खुद लाये हैं तो क्या हम को ये हक़ हैं की हम उस संसद भवन को जला दे जहां ये बैठे हैं , उस तिरंगे को जला दे जिसको फेहरा देने का अधिकार हमें प्रधान मंत्री को दिया हैं , या हम उस संविधान को ही जला दे जो हमारी रीढ़ की हड्डी हैं या फिर हर उस कानून को नकार दे जिसको उन लोगो ने बनाया हैं जो हमारे बीच मे से कानून की पढाई कर के उस लेवल तक पहुचे हैं जहां कानून बनाये जाते हैं .
व्यंग लिखना , कार्टून बनाना , लेख देना , सत्याग्रह करना और भी ना जाने कितने विरोध करने के उपाय संविधान मे हमें मिले हैं लेकिन
शायद संविधान बनाते समय ये सोचा नहीं गया था की कभी
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ होगा
देश का अपमान
तिरंगे का अपमान
संविधान का अपमान
कानून का अपमान
संसद का अपमान
अगर संविधान बनाने वाले उस समय ये सोच पाते तो शायद कहीं ना कहीं ये जरुर लिखा होता , संविधान में की ये सब "देश द्रोह " माना जायेगा .
अगर आप उन सब से नाराज हैं जो खुद यही कर रहे हैं जैसे भ्रष्ट नेता जो संसंद में आते ही अपने को देश का
मालिक समझते हैं , तो उनके खिलाफ आवाज उठाए . जगह , जगह अपने अपने स्तर पर आर टी आई लगा कर व्यवस्था को सुधारे . वो हम मे से एक हैं यानी हमारे "रेप्रीजेंटेटटीव्" अगर वो बेईमान हैं तो कहीं ना कही हम बेईमान हैं क्युकी हम उनको चुन कर लाये हैं .
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का अर्थ देश , संविधान , तिरंगा , कानून . संसद का अपमान करना कतई नहीं हो सकता हैं
क्या हम को अधिकार हैं की अगर हम व्यवस्था से नाराज हैं , अगर हम संसद में बैठे हुए उन लोग से नाराज हैं जिनको चुन कर हम खुद लाये हैं तो क्या हम को ये हक़ हैं की हम उस संसद भवन को जला दे जहां ये बैठे हैं , उस तिरंगे को जला दे जिसको फेहरा देने का अधिकार हमें प्रधान मंत्री को दिया हैं , या हम उस संविधान को ही जला दे जो हमारी रीढ़ की हड्डी हैं या फिर हर उस कानून को नकार दे जिसको उन लोगो ने बनाया हैं जो हमारे बीच मे से कानून की पढाई कर के उस लेवल तक पहुचे हैं जहां कानून बनाये जाते हैं .
व्यंग लिखना , कार्टून बनाना , लेख देना , सत्याग्रह करना और भी ना जाने कितने विरोध करने के उपाय संविधान मे हमें मिले हैं लेकिन
शायद संविधान बनाते समय ये सोचा नहीं गया था की कभी
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ होगा
देश का अपमान
तिरंगे का अपमान
संविधान का अपमान
कानून का अपमान
संसद का अपमान
अगर संविधान बनाने वाले उस समय ये सोच पाते तो शायद कहीं ना कहीं ये जरुर लिखा होता , संविधान में की ये सब "देश द्रोह " माना जायेगा .
अगर आप उन सब से नाराज हैं जो खुद यही कर रहे हैं जैसे भ्रष्ट नेता जो संसंद में आते ही अपने को देश का
मालिक समझते हैं , तो उनके खिलाफ आवाज उठाए . जगह , जगह अपने अपने स्तर पर आर टी आई लगा कर व्यवस्था को सुधारे . वो हम मे से एक हैं यानी हमारे "रेप्रीजेंटेटटीव्" अगर वो बेईमान हैं तो कहीं ना कही हम बेईमान हैं क्युकी हम उनको चुन कर लाये हैं .
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का अर्थ देश , संविधान , तिरंगा , कानून . संसद का अपमान करना कतई नहीं हो सकता हैं
September 05, 2012
"लम्पट और नक्कालों से सावधान "
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15:54 (46 minutes ago)
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झूठ के पाँव नहीं होते रचना जी, जब मैंने आपके इस आरोप के परिप्रेक्ष्य मे रवीन्द्र जी से पूछा तो वे हतप्रभ रह गए उन्होने कहा कि मैंने तो दशक के सभी सम्मानित ब्लोगर्स को मेल 28 जुलाई को ही कर दिया था । उसके बाद रचना जी ने मुझे फोन भी किया था और कहा था कि मैंने टिकट बूक करा लिया है । उसके बाद उन्होने मुझे फिर फोन करके पूछा कि कार्यक्रम के लिए मैं कुछ पुस्तकें भेजना चाहती हूँ दिल्ली मेन किसे दे दूँ तो मैंने अविनाश जी का नाम सुझाया था । उन्होने वह मेल मुझे फॉरवर्ड भी किया है जो यहाँ प्रस्तुत है। मैं तो यही कहूँगा कि गुरग्रह से बचिए किसी पर इल्जाम सोच-समझकर लगाईए ।
from: | रवीन्द्र प्रभात noreply-comment@blogger.com | ||
to: | indianwomanhasarrived@gmail.com | ||
date: | 5 September 2012 15:54 | ||
subject: | [मंगलायतन] लम्पट और नक्कालों से सावधान पर नई टिप्पणी. | ||
mailed-by: | blogger.bounces.google.com | ||
Signed by: | blogger.com |
मनोज पाण्डेय ने आपकी पोस्ट "लम्पट और नक्कालों से सावधान" पर एक नई टिप्पणी छोड़ी है:
झूठ के पाँव नहीं होते रचना जी, जब मैंने आपके इस आरोप के परिप्रेक्ष्य मे रवीन्द्र जी से पूछा तो वे हतप्रभ रह गए उन्होने कहा कि मैंने तो दशक के सभी सम्मानित ब्लोगर्स को मेल 28 जुलाई को ही कर दिया था । उसके बाद रचना जी ने मुझे फोन भी किया था और कहा था कि मैंने टिकट बूक करा लिया है । उसके बाद उन्होने मुझे फिर फोन करके पूछा कि कार्यक्रम के लिए मैं कुछ पुस्तकें भेजना चाहती हूँ दिल्ली मेन किसे दे दूँ तो मैंने अविनाश जी का नाम सुझाया था । उन्होने वह मेल मुझे फॉरवर्ड भी किया है जो यहाँ प्रस्तुत है। मैं तो यही कहूँगा कि गुरग्रह से बचिए किसी पर इल्जाम सोच-समझकर लगाईए ।
from: | मनोज पाण्डेय noreply-comment@blogger.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
to: | indianwomanhasarrived@gmail.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
date: | 5 September 2012 15:56 | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
subject: | [मंगलायतन] लम्पट और नक्कालों से सावधान पर नई टिप्पणी. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
mailed-by: | blogger.bounces.google.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Signed by: | blogger.com |
किसी की आईडी से कमेन्ट करना और दूसरो को झूठा कहना ,
अपनी तारीफ़ खुद करना और अपनी तारीफ़ के लिये ब्लॉग बनाना
मेरे पास और भी सब ईमेल हैं कमेंट्स की जो प्रूफ चाहते हो कहे
मेरे कमेन्ट के जवाब में कहा गया हैं की झूठ के पाँव नहीं होते
सब खुदगर्ज हैं केवल और केवल एक महान हैं और उनकी महानता ये हैं
September 04, 2012
15 अगस्त 2011 से 14 अगस्त 2012 के बीच में पुब्लिश की गयी ब्लॉग प्रविष्टियाँ आमंत्रित हैं
विषय
नारी सशक्तिकरण
घरेलू हिंसा
यौन शोषण
लेख और कविता , कहानी की विधा इस बार नहीं रखी जाएगी
एक ब्लॉगर किसी भी विषय मे बस एक प्रविष्टि भेजे,
100 प्रविष्टि का अर्थ हुआ 100 ब्लॉग पोस्ट { लेख और कविता विधा की }
अगर आप ने { महिला और पुरुष ब्लॉग लेखक } इन विषयों पर ऊपर दिये हुए समय काल के अन्दर कोई भी पोस्ट दी हैं तो आप उस पोस्ट का लिंक यहाँ दे सकते .
अगर नारी ब्लॉग के पास 100 ऐसी पोस्ट के लिंक आजाते हैं तो हमारे 4 ब्लॉगर मित्र जज बनकर उन प्रविष्टियों को पढ़ेगे . प्रत्येक जज 25 प्रविष्टियों मे से 3 प्रविष्टियों को चुनेगा . फिर 12 प्रविष्टियाँ एक नये ब्लॉग पर पोस्ट कर दी जायेगी और ब्लॉगर उसको पढ़ कर अपने प्रश्न उस लेखक से पूछ सकता हैं .
उसके बाद इन 12 प्रविष्टियों के लेखको को आमंत्रित किया जायेगा की वो ब्लॉग मीट में आकर अपनी प्रविष्टियों को मंच पर पढ़े , अपना नज़रिया दे और उसके बाद दर्शको के साथ बैठ कर इस पर बहस हो .
दर्शको में ब्लॉगर होंगे . कोई साहित्यकार या नेता या मीडिया इत्यादि नहीं होगा . मीडिया से जुड़े ब्लॉगर और प्रकाशक होंगे . संभव हुआ तो ये दिल्ली विश्विद्यालय के किसी college के ऑडिटोरियम में रखा जाएगा ताकि नयी पीढ़ी की छात्र / छात्रा ना केवल इन विषयों पर अपनी बात रख सके अपितु ब्लोगिंग के माध्यम और उसके व्यापक रूप को समझ सके . इसके लिये ब्लोगिंग और ब्लॉग से सम्बंधित एक लेक्चर भी रखा जायेगा .
12 प्रविष्टियों मे से बेस्ट 3 का चुनाव उसी सभागार में होगा दर्शको के साथ .
आयोजक नारी ब्लॉग
निर्णायक मंडल रेखा श्रीवास्तव , घुघूती बसूती , नीरज रोहिला , मनोज जी , निशांत मिश्र और मुक्ति { 6 संभावित नाम हैं ताकि किसी कार्य वश कोई समय ना दे सके तो }
प्रविष्टि भेजने की अंतिम तिथी 15 सितम्बर 2012 हैं .
सभी 12 प्रविष्टियों को पुस्तके और प्रथम 3 प्रविष्टियों को कुछ ज्यादा पुस्तके देने की योजना हैं लेकिन इस पर विमर्श जारी हैं
ब्लॉग मीट दिसंबर 2012 में रखने का सोचा जा रहा हैं लेकिन ये निर्भर होगा की किस कॉलेज मे जगह मिलती हैं .
आप से आग्रह हैं अपनी ब्लॉग पोस्ट का लिंक कमेन्ट मे छोड़ दे और अगर संभव हो तो इस पोस्ट को और और लोगो तक भेज दे
मेरी यानी रचना की , और जो भी निर्णायक मंडल होगा उनकी कोई भी प्रविष्टि इस आयोजन में शामिल नहीं होगी हां वो लेखक से प्रश्न पूछने के अधिकारी होंगे अपना निर्णय देने से पहले .
मेरी कोशिश हैं की हम इस बार नारी आधारित मुद्दे पर चयन करे और फिर हर चार महीने मे एक बार विविध सामाजिक मुद्दों पर चयन करे . हिंदी ब्लॉग को / आप की बात को कुछ और लोगो तक , ख़ास कर नयी पीढ़ी तक लेजाने का ये एक माध्यम बन सकता हैं .
आप अपने विचार निसंकोच कह सकते हैं . निर्णायक मंडल से आग्रह हैं की वो इस आयोजन के लिये समय निकाले
ये पोस्ट नारी ब्लॉग से साभार हैं आप अपनी प्रविष्टि और कमेन्ट वहीँ दे
लिंक
September 02, 2012
सम्मान , पुरस्कार , पुरस्कार का सम्मान या सम्मान का पुरस्कार
सम्मान शब्द का क्या अर्थ हैं
आप को कौन सम्मानित कर रहा हैं
ये पुरस्कार वितरण समारोह था
पुरस्कार का सम्मान से क्या लेना देना हैं
पुरस्कार उसको दिया जाता हैं जो किसी को भी पसंद आता
आप भी शुरू कर सकती हैं क़ोई पुरस्कार
लेकिन सम्मान तब होता हैं जब आप की विधा का क़ोई आप के किये को समझता हैं , सराहता हैं सम्मान आप से छोटे भी आप का कर सकते हैं जैसे अगर रश्मि प्रभा जी को ५ पुरूस्कार मिले हैं तो रेखा जी उन पर क़ोई पोस्ट दे कर उनको सम्मानित करे
सोच कर देखिये आप सब किस बात पर बहस कर रहे हैं
अगर आयोजक ने इसको ब्लॉगर सम्मान कह दिया हैं तो गलत हैं ये महज एक पुरस्कार समारोह था , आयोजक की पसंद के ब्लोग्गर को मिला , वोटिंग को जरिया माना गया , लेकिन ये सम्मान नहीं हैं
आप को कौन सम्मानित कर रहा हैं
ये पुरस्कार वितरण समारोह था
पुरस्कार का सम्मान से क्या लेना देना हैं
पुरस्कार उसको दिया जाता हैं जो किसी को भी पसंद आता
आप भी शुरू कर सकती हैं क़ोई पुरस्कार
लेकिन सम्मान तब होता हैं जब आप की विधा का क़ोई आप के किये को समझता हैं , सराहता हैं सम्मान आप से छोटे भी आप का कर सकते हैं जैसे अगर रश्मि प्रभा जी को ५ पुरूस्कार मिले हैं तो रेखा जी उन पर क़ोई पोस्ट दे कर उनको सम्मानित करे
सोच कर देखिये आप सब किस बात पर बहस कर रहे हैं
अगर आयोजक ने इसको ब्लॉगर सम्मान कह दिया हैं तो गलत हैं ये महज एक पुरस्कार समारोह था , आयोजक की पसंद के ब्लोग्गर को मिला , वोटिंग को जरिया माना गया , लेकिन ये सम्मान नहीं हैं
August 30, 2012
DONT YOU THINK ITS HIGH TIME WE FIRST PUT THE FACTS RIGHT
LUCKNOW: Hindi bloggers are now getting their place in the sun. Drawn
from India and the rest of the world, they will be honoured in Lucknow
on August 27 for popularising the language in cyberspace.
Parikalpana, a bloggers' organisation, would confer the awards on 51 persons during an international bloggers' conclave at the Rai Umanath Bali auditorium here, said Ravindra Prabhat, the organising committee's convenor.
The participants, some of whom also blog in English and Urdu, have made Hindi popular in the United States, the United Kingdom, the United Arab Emirates, Canada, Germany and Mauritius.
"The blogger of the decade prize would be conferred on Bhopal's Ravi Ratlami who has a huge following," added Prabhat, a noted Hindi blogger.
The NRI bloggers who have confirmed their participation include Dr Poornima Burman, editor of Abhivyakti (an online book in Hindi published from Sharjah) and the Toronto-based Samir Lal 'Samir' who writes blogs in Hindi and English.
London-based journalist Shikha Varshneya, a regular blogger who has written a book 'Russia in Memory', is also expected to attend the ceremony. The others include Sudha Bhargava (USA), Anita Kapoor (London), Baboosha Kohli (London), Mukesh Kumar Sinha (Jharkhand) and Rae Bareli's Santosh Trivedi, an engineer who left his job with the Uttar Pradesh Power Corporation Ltd, for blogging.
Avinash Vachaspati, the author of the first book on Hindi blogging in India and DS Pawala (Bokaro), the first to start Hindi blogging in India would also be there as would multi-lingual blogger Ismat Zaidi, who writes in Hindi, Urdu and English. Her Urdu ghazals are a hit on the web.
Asgar Wajahat and Shesh Narayan Singh are also expected to participate, but a confirmation is awaited.
The bloggers would discuss the future of the new media, its contribution to the society, especially the future of Hindi blogging and its role in the days to come.
---
this is the news in ht dated 8th august lucknow edition
santosh trevedi left his job for bloging REALLY ???
avinash vachaspati wrote the first book on hindi bloging REALLY ??
DS Pawala (Bokaro), the first to start Hindi blogging in India REALLY ??
DONT YOU THINK ITS HIGH TIME WE FIRST PUT THE FACTS RIGHT
Parikalpana, a bloggers' organisation, would confer the awards on 51 persons during an international bloggers' conclave at the Rai Umanath Bali auditorium here, said Ravindra Prabhat, the organising committee's convenor.
The participants, some of whom also blog in English and Urdu, have made Hindi popular in the United States, the United Kingdom, the United Arab Emirates, Canada, Germany and Mauritius.
"The blogger of the decade prize would be conferred on Bhopal's Ravi Ratlami who has a huge following," added Prabhat, a noted Hindi blogger.
The NRI bloggers who have confirmed their participation include Dr Poornima Burman, editor of Abhivyakti (an online book in Hindi published from Sharjah) and the Toronto-based Samir Lal 'Samir' who writes blogs in Hindi and English.
London-based journalist Shikha Varshneya, a regular blogger who has written a book 'Russia in Memory', is also expected to attend the ceremony. The others include Sudha Bhargava (USA), Anita Kapoor (London), Baboosha Kohli (London), Mukesh Kumar Sinha (Jharkhand) and Rae Bareli's Santosh Trivedi, an engineer who left his job with the Uttar Pradesh Power Corporation Ltd, for blogging.
Avinash Vachaspati, the author of the first book on Hindi blogging in India and DS Pawala (Bokaro), the first to start Hindi blogging in India would also be there as would multi-lingual blogger Ismat Zaidi, who writes in Hindi, Urdu and English. Her Urdu ghazals are a hit on the web.
Asgar Wajahat and Shesh Narayan Singh are also expected to participate, but a confirmation is awaited.
The bloggers would discuss the future of the new media, its contribution to the society, especially the future of Hindi blogging and its role in the days to come.
---
this is the news in ht dated 8th august lucknow edition
santosh trevedi left his job for bloging REALLY ???
avinash vachaspati wrote the first book on hindi bloging REALLY ??
DS Pawala (Bokaro), the first to start Hindi blogging in India REALLY ??
DONT YOU THINK ITS HIGH TIME WE FIRST PUT THE FACTS RIGHT
July 31, 2012
Please read
http://akaltara.blogspot.in/2012/07/blog-post_31.html
dear readers
please read this link
dear readers
please read this link
July 28, 2012
एक ब्लॉग पर आये बेनामी कमेन्ट पढ़े
एक ब्लॉग पर आये बेनामी कमेन्ट पढ़े आज , सोचा बांटू , ज़रा देखिये क्या कहा गया हैं और क्या मतलब निकला हैं .
July 23, 2012
आधा भरा या आधा खाली
बचपन में दादी कहती थी किताब कभी खुली मत छोडो , पढ़ लो और बंद करके उठो वरना भूत पढ़ेगे . आज भी किताब , कॉपी , मैगज़ीन हाथ में होती है तो बंद करके ही उठती हूँ , अब जानती हूँ की ये भूत वाली बात संभव नहीं थी महज एक अच्छी आदत मेरी बे पढ़ी लिखी दादी हमे सिखा गयी .
वैसे ही घर के सबलोग कभी पानी के गिलास में पानी पीकर , झूठा पानी नहीं छोड़ते थे , मै भी नहीं छोडती .
जब लोगो कहते ग्लास आधा खाली क्यूँ दिखता हैं
वैसे ही घर के सबलोग कभी पानी के गिलास में पानी पीकर , झूठा पानी नहीं छोड़ते थे , मै भी नहीं छोडती .
जब लोगो कहते ग्लास आधा खाली क्यूँ दिखता हैं
July 18, 2012
July 15, 2012
July 12, 2012
July 11, 2012
रवि कर फटी चर
चाम में आकर्षण हैं
कह कर
अपनी मानसिकता की
खुद खोल दी हैं पोल
चमार को चाम
सबसे ज्यादा हैं भाता
कह कर
अपनी मानसिकता की
खुद खोल दी हैं पोल
चमार को चाम
सबसे ज्यादा हैं भाता
July 09, 2012
July 05, 2012
July 02, 2012
June 27, 2012
क्या आप जानते हैं दुनिया का पहला ब्लॉगर किसे माना जा रहा हैं ?
नहीं जानते तो ये पढिये और समझिये ब्लॉग्गिंग वास्तव मे हैं क्या , ब्लॉगर किसे कहा जाता हैं और क्यूँ ??
June 25, 2012
व्यंग और सटायर
ये एक ऐसी विधा हैं जिसका ज्ञान बहुत कम लोगो को होता हैं
लोग दूसरे के ऊपर मौज मस्ती के लिये या अपनी भड़ास निकालने के लिये लिख देते हैं और उसको व्यंग या स्टायर का नाम देते हैं
लोग दूसरे के ऊपर मौज मस्ती के लिये या अपनी भड़ास निकालने के लिये लिख देते हैं और उसको व्यंग या स्टायर का नाम देते हैं
June 22, 2012
हिंदी ब्लॉग जगत
मै तो जो करती हूँ खुल कर करती हूँ और अनाम रह कर करती हूँ पर मै नकारात्मक और रियेक्शनिस्ट
हूँ लेकिन दुसरे जब करते हैं तो हिंदी ब्लॉग जगत की भलाई के लिये करते हैं
June 21, 2012
June 12, 2012
संपर्क सूत्र
अगर आप इस ब्लॉग को पढना चाहते हैं तो संपर्क सूत्र हैं indianwomanhasarrived@gmail.com ईमेल दे .
June 11, 2012
June 10, 2012
कभी कभी लगता हैं समाज कितना विभाजित हैं और हम कितने खुद जिम्मेदार हैं इस विभाजन के लिये .
हिंदी ब्लॉग जगत में दो खेमे बनते साफ़ दिख रहे हैं
खेमा नंबर 1 वो लोग जो ब्लॉग पर हिन्दी / शुद्ध हिंदी / किलिष्ट हिंदी लिखते हैं
खेमा नंबर 2 वो लोग जो हिंदी में ब्लॉग लिखते हैं .
खेमा नंबर 1 वो लोग जो ब्लॉग पर हिन्दी / शुद्ध हिंदी / किलिष्ट हिंदी लिखते हैं
खेमा नंबर 2 वो लोग जो हिंदी में ब्लॉग लिखते हैं .
June 08, 2012
हर बात को सबके सामने रखना और प्रकाश में लाना भी सकारात्मकता ही
हर बात को सबके सामने रखना और प्रकाश में लाना भी सकारात्मकता ही है
दिव्या ने कितनी बड़ी बात कितने साधारण और स्पष्ट शब्दों में कह दी हैं .
June 01, 2012
जब दूसरे करते थे तो गलत था आप करते हैं तो सही हैं
जब मैने हिंदी ब्लॉग लिखना शुरू किया था { ६ साल पहले } तब गूगल पर
ट्रांस्लिशन की सुविधा नहीं थी और मैने अपनी कविता का ब्लॉग रोमन में लिखा
था . फिर "नारद" जो उस समय जीतेन्द्र चौधरी , संजय बेगानी इत्यादि चलाते थे
वहाँ से कमेन्ट आया एक कविता पर उन से जुड़े और ब्लॉग को हिंदी में लिखे
इत्यादि .
उस समय चिटठा चर्चा मंच थाMay 30, 2012
अगर मेरा लिखा पढ़ना हैं तो निडरता का प्रमाण पत्र तो लाना ही होगा
संतोष त्रिवेदी
कभी आप दिव्या जील पर दिवस को जोड़ कर पोस्ट बनाते हैं और बिना शर्मसार हुए दिवस जिसे वो भाई मानती हैं उनका नाम जोडते हैं और दिव्या को लोमड़ी कहते हैं और फिर आप के मित्र ताली बजाते हैं
उसके बाद आप मेरे आलेख के ऊपर पोस्ट बनाते हैं
और आप अपने को बुद्धिजीवी कहते हैं ??
अगर हिम्मत हैं और अपनी माँ का दूध पीया हैं तो हम सब महिला पर नाम लेकर पोस्ट बनाए और मैने ये मुद्दा ना अन सी डब्लू मै उठाया तो मैने अपनी माँ का दूध नहीं पीया हैं समझ लीजिये
अग्रीगेटर के मालिक जो हैं वो साधिकार मुझ से कह सकते हैं
अग्रीगेटर आप की निजी संपत्ति नहीं हैं और ना ही मेरा ब्लॉग
मै ब्लॉग लिखती हूँ , पोस्ट लिखती हूँ तो नाम के साथ लिखती हूँ निडर हो कर लिखती और अब उनके लिये लिखती हूँ जो निडरता का प्रमाण पत्र रखते हैं
और अगर मेरा लिखा पढ़ना हैं तो निडरता का प्रमाण पत्र तो लाना ही होगा
नहीं हैं तो अपने ब्लॉग पर रोते रहे
सतीश जी शुक्रिया दोनों पोस्ट पर अपनी आपत्ति दर्ज करने की
ये कमेन्ट अब डिलीट कर दिया गया हैं
खुद वही कर रहे हैं जिसके लिये मेरे ऊपर आपत्ति दर्ज करते हैं
अब कमेन्ट मोडरेशन लग गया हैं
हिम्मत ही नहीं हैं
and now my comment is
अशालीन टिप्पणी
calling a blogger lomadii is shaaleen my god what hypocracy
if writes its एक विशेष प्रवृत्ति के खिलाफ मेरा नजरिया है,
and if i write its WRONG
waah kyaa baat haen
कभी आप दिव्या जील पर दिवस को जोड़ कर पोस्ट बनाते हैं और बिना शर्मसार हुए दिवस जिसे वो भाई मानती हैं उनका नाम जोडते हैं और दिव्या को लोमड़ी कहते हैं और फिर आप के मित्र ताली बजाते हैं
उसके बाद आप मेरे आलेख के ऊपर पोस्ट बनाते हैं
और आप अपने को बुद्धिजीवी कहते हैं ??
अगर हिम्मत हैं और अपनी माँ का दूध पीया हैं तो हम सब महिला पर नाम लेकर पोस्ट बनाए और मैने ये मुद्दा ना अन सी डब्लू मै उठाया तो मैने अपनी माँ का दूध नहीं पीया हैं समझ लीजिये
अग्रीगेटर के मालिक जो हैं वो साधिकार मुझ से कह सकते हैं
अग्रीगेटर आप की निजी संपत्ति नहीं हैं और ना ही मेरा ब्लॉग
मै ब्लॉग लिखती हूँ , पोस्ट लिखती हूँ तो नाम के साथ लिखती हूँ निडर हो कर लिखती और अब उनके लिये लिखती हूँ जो निडरता का प्रमाण पत्र रखते हैं
और अगर मेरा लिखा पढ़ना हैं तो निडरता का प्रमाण पत्र तो लाना ही होगा
नहीं हैं तो अपने ब्लॉग पर रोते रहे
सतीश जी शुक्रिया दोनों पोस्ट पर अपनी आपत्ति दर्ज करने की
ये कमेन्ट अब डिलीट कर दिया गया हैं
खुद वही कर रहे हैं जिसके लिये मेरे ऊपर आपत्ति दर्ज करते हैं
अब कमेन्ट मोडरेशन लग गया हैं
हिम्मत ही नहीं हैं
and now my comment is
अशालीन टिप्पणी
calling a blogger lomadii is shaaleen my god what hypocracy
if writes its एक विशेष प्रवृत्ति के खिलाफ मेरा नजरिया है,
and if i write its WRONG
waah kyaa baat haen
May 26, 2012
ट्रेंड सेटर
कितनी अजीब बात हैं पहले लोग परेशान रहते थे की मै हमेशा अंट शंट लिखती हूँ , हिंदी मे गलती करती हूँ , नकारात्मक लिखती हूँ , हिंदी ब्लॉग के सो काल्ड परिवार के खिलाफ लिखती हूँ . अब जब मै ने अपने ब्लॉग को निमंत्रित लोगो के लिये करदिया यानी पाठक को अधिकार दे दिया की वो चाहे तो ही मुझे पढ़े तो भी लोग परेशान हैं , उन्हे ये अलोकतांत्रिक लग रहा हैं .
चलिये ख़ुशी की बात ये हैं की मुझे ट्रेंड सेटर मान ही रहे हैं,
ऐसा बस हिंदी ब्लोगिंग मे ही होता हैं
- रचना ने कहा…
-
निर्णायक मंडल
परिकल्पना सम्मान-२०११ हेतु रचनाकारों के चयन के लिए , हमारे निर्णायक :
मुख्य समन्वयक सह मार्गदर्शक :
डा. सुभाष राय ( मुख्य संपादक : दैनिक जनसंदेश टाइम्स,लखनऊ )
मुख्य सलाहकार :
श्रीमती सरस्वती प्रसाद (वरिष्ठ कवियित्री,पुणे )
श्री समीर लाल समीर, टोरंटो (कनाडा )
निर्णायक मंडल :
श्रीमती निर्मला कपिला,नंगल (पंजाब)
डा. अरविन्द मिश्र, वाराणसी
श्री खुशदीप सहगल, दिल्ली
श्री सुमन सिन्हा,पटना
श्री गिरीश पंकज, रायपुर
श्री मनोज कुमार,कोलकाता
श्रीमती शिखा वार्ष्णेय, लन्दन
श्रीमती दर्शन कौर धनोए,मुम्बई
श्री शाहिद मिर्ज़ा शाहिद,मेरठ
श्री ललित शर्मा,अभनपुर
श्रीमती अरुणा कपूर,दिल्ली
श्री पवन चन्दन,दिल्ली
श्री बसंत आर्य,मुम्बई
श्री विरेन्द्र शर्मा, मिशिगन (यु एस ए)
* उपरोक्त निर्णायकों के अभिमत के साथ संपादक मंडल के सदस्यों क्रमश: रवीन्द्र प्रभात, अविनाश वाचस्पति,रश्मि प्रभा,रणधीर सिंह सुमन, जाकिर अली रजनीश,शहनवाज़ और कनिष्क कश्यप भी निर्णायकों के साथ सहायक की भूमिका में होंगे !
कितनी बढ़िया बात हैं की जितने नाम नामांकित हैं वो बहुत से निर्णायक मंडलमें भी हैं और अभी तक भी उन्होने आपना नाम वापिस नहीं लिया हैं दशक का ब्लॉग/ ब्लोग्गर कहलाने से .ऐसा बस हिंदी ब्लोगिंग मे ही होता हैं निर्णायक भी नोमिनेट हो और मना ना करे
May 24, 2012
कॉमन वेल्थ का सामान अब अलग अलग मंत्रालय को मुफ्त में दिया जाएगा
कॉमन वेल्थ का सामान अब अलग अलग मंत्रालय को मुफ्त में दिया जाएगा . संसद ने ये पास कर दिया हैं . रेलवे को रसोई का सामान मिलेगा यानी सारे माइक्रोवेव अब रेल के अधिकारियों के यहाँ चलेगे , क्युकी ट्रेन मे तो चल नहीं सकते . कुछ सामान सरकारी स्कूल को दिया जायेगा , हो सकता हैं डबल बेड दिये जा रहे हो .
शायद इसीलिये सरकारी नौकरी पाने के लिये लोग रिश्वत देते हैं . बाद में तो घर खर्च का जुगाड़ तो सरकार कर ही देती हैं .
May 23, 2012
किसी भी प्रकार के पुरूस्कार से प्रतिस्पर्धा बढ़ती हैं
किसी भी प्रकार के पुरूस्कार से प्रतिस्पर्धा बढ़ती हैं . जबकि अब 10 वे के नतीजे मे भी नंबर नहीं देने का फैसला हैं , ब्लॉग पर पुरूस्कार देना गलत हैं .
जिस पुरूस्कार की कोई मान्यता ही नहीं हैं , जिसके चुनाव की प्रक्रिया में लेखक की सहमति ही नहीं ली गयी हैं उसको ले कर लोग क्या साबित करते हैं ???
पता नहीं , शायद कहीं और कुछ नहीं मिलता हैं , प्रशंसा की दरकार हैं शायद उनको , या शायद ये मुगालता हैं की वो सबसे बेहतर हैं
May 22, 2012
चलिये बताये क्या आप जानते थे ये बात .
निमंत्रित पाठक नमस्ते
चलिये बताये क्या आप जानते थे ये बात .
भारत में निमन्त्रण का अर्थ हैं किसी को आमंत्रित करना , हम यहाँ आमंत्रित करने वाले से पूछते नहीं हैं जबकि बाकी जगह आमत्रित करने वाले से पहले पूछा जाता हैं "क्या आप आना पसंद करेगे , क्या आप आ सकते हैं " . जब उनसे सहमति मिल जाती हैं तब उनको निमन्त्रण भेजा जाता हैं .
ये एक सेट प्रोसेस हैं जो हमारे यहाँ अभी केवल कुछ वर्गों में प्रचलित हैं .
इस लिये गूगल ने ये सुविधा प्रदान कर रखी हैं .
चलिये बताये क्या आप जानते थे ये बात .
भारत में निमन्त्रण का अर्थ हैं किसी को आमंत्रित करना , हम यहाँ आमंत्रित करने वाले से पूछते नहीं हैं जबकि बाकी जगह आमत्रित करने वाले से पहले पूछा जाता हैं "क्या आप आना पसंद करेगे , क्या आप आ सकते हैं " . जब उनसे सहमति मिल जाती हैं तब उनको निमन्त्रण भेजा जाता हैं .
ये एक सेट प्रोसेस हैं जो हमारे यहाँ अभी केवल कुछ वर्गों में प्रचलित हैं .
इस लिये गूगल ने ये सुविधा प्रदान कर रखी हैं .
May 19, 2012
ब्लोगिंग का अर्थ हैं सार्जनिक डायरी यानी सब कुछ सामने . ये छुपा कर वोट करने का क्या औचित्य हैं .
पहले ब्लॉगर को खुद अधिकार होना चाहिये की वो अपना नामांकन करे . जो ब्लॉगर
ये पुरूस्कार चाहते हैं वो पहले नामांकन भरे . पुरानी सारी प्रक्रिया रद्द
होनी चाहिये . पारदर्शिता हैं की आप अगली पोस्ट में पहले नामांकन मँगाए
ब्लॉगर से उनके नाम का . कौन ऐसा व्यक्ति हैं जो ये मानता हैं की वो दशक का
ब्लॉगर कहलाने योग्य हैं . ये जरुरी हैं की ये नाम कमेन्ट के जरिये सबके
सामने हो . जब ये नाम आ जाये उसके बाद ही पाठको से पूछा जाये की वो इन में
से किसको बनाना चाहते हैं . वो भी कमेन्ट में ही हो और एक हफ्ते के अन्दर
जितने कमेन्ट हो उनको गिन लिया जाए . ब्लोगिंग का अर्थ हैं सार्जनिक डायरी यानी सब कुछ सामने . ये छुपा कर वोट करने का क्या औचित्य हैं .
जब टिपण्णी की सुविधा हैं तो फिर वोट क्यूँ . जिस को जिसे चुनना हैं वो खुल कर कह दे . इतना दुराव छिपाव किसलिये . और संभव हो तो ना पसंद { यानी
राईट तो रिजेक्ट } भी होना चाहिये . अगर कोई अपने को दशक का ब्लॉगर मानता हैं और पाठक नहीं मानते तो उन्हे अधिकार होना चाहिये की उस ब्लॉगर के नाम को रिजेक्ट कर दे . लेकिन हो सब ओपन प्रोसेस से .
जितनी नेगटिव टीप हो वो भी काउंट की ही जा सकती हैं .
मुझे सच में ये जानने की बड़ी इच्छा हैं की
कौन ऐसा ब्लॉगर हैं
जो अपने को दशक का ब्लॉगर मानता हैं . ?
जो अपने को दशक का ब्लॉगर कवि इत्यादि मानता हैं ?
कौन हैं जो अपने ब्लॉग लेखन से इतना संतुष्ट हैं की अपने को पुरूस्कार का हकदार मानता हैं
मुझे सच में ये जानने की बड़ी इच्छा हैं की
कौन ऐसा ब्लॉगर हैं
जो अपने को दशक का ब्लॉगर मानता हैं . ?
जो अपने को दशक का ब्लॉगर कवि इत्यादि मानता हैं ?
कौन हैं जो अपने ब्लॉग लेखन से इतना संतुष्ट हैं की अपने को पुरूस्कार का हकदार मानता हैं
May 15, 2012
मेरी अग्रिम बधाई स्वीकारे .
क्या आप इस दशक के हिंदी चिट्ठाकार बनना चाहते हैं ? तो तुरंत इस लिंक को अपने ब्लॉग मित्रो को फॉरवर्ड करिये . जितने आप को वोट देगे उतना संभावनाए अधिक होगी आप के पास इस उपाधि को पाकर आपने ब्लॉग की टेम्पलेट में लगाने की .
मेरी अग्रिम बधाई स्वीकारे क्युकी इस उपाधि के बाद आप को ब्लॉग भारत रत्न मिलना ही रह जाता हैं और वो आप को अगले साल अवश्य मिलेगा . उसके लिये भी अगर आप इस दौड़ मे शामिल हैं तो भी मेरी अग्रिम बधाई स्वीकारे .
जो लोग पुरूस्कार देने में सक्षम हैं वो शुभकामना के अधिकारी हैं , मेरी शुभकामना .
फिर मिलते हैं पुरूस्कार वितरण समारोह के विवरण के बाद
April 25, 2012
नज़र अपनी अपनी समझ अपनी अपनी . ६ साल के बाद हिंदी ब्लॉग लेखन
हिंदी ब्लॉग लिखते लिखते ७वे साल में पदार्पण करना हैं इस माह के अंत तक .
जब आई थी तब यहाँ "नारद" युग था और उसी प्रकार की लगाई बुझाई थी . मेरे साथ साथ "ब्लॉग वाणी और चिटठा जगत" आया और और "पसंद " , " नापसंद " तथा टॉप टेन , टॉप हंड्रेड का चलन रहा .
आज कल "हमारी वाणी " हैं पर हमारा कुछ ना था ना हैं ना होगा .
फिर भी महिला के प्रति दोयम का दर्जा और उस से असहमत होने पर उसके परिवार और उसके जीवन शेली पर ऊँगली उठाना आज भी बरकार हैं , वंदना की कविता पर हुये फेसबुक बवाल ने बताया . आज भी लोगो जेंडर बायस और सेक्सुअल हरासमेंट को केवल शरीर से जोडते हैं और अपने को पढ़ा लिखा और बुद्धिजीवी कहते हैं .
हिन्दू मुस्लिम विवाद आज भी बरकरार हैं क्युकी बात आस्था की कभी नहीं होती हैं बात होती हैं एक दुसरे को नीचा दिखाने की .
रामायण , गीता , कुरआन या बाइबल महज धर्म ग्रन्थ हैं कोई संविधान या क़ानूनी किताब नहीं हैं ये समझाना पढ़े लिखो को कितना मुश्किल हैं ये अगर किसी को देखना हैं तो हिंदी ब्लॉग जगत मे देखे . यहाँ संविधान और तिरंगे का अपमान होता हैं और धर्म ग्रंथो के लिखे को बार बार पढ़ाया जाता हैं .
तर्क तो बहुत ही बढ़िया हैं कोई कहता हैं हिन्दू देवता ने यहाँ चीर हरण किया तो कोई कहता हैं कुरआन में बुजुर्ग औरतो को कपड़े उतारने की सलाह दी गयी हैं .
लगता हैं लोग इन ग्रंथो को सुबह शाम बांचते होगे .
कुछ बदला भी हैं जैसे अनूप जी फ़ुरसतिया पर सामाजिक लेख लिखते दिखे , समीर जी उड़न तश्तरी पर भारतीये अतिथियों से परेशान दिखे . ज्ञान पाण्डेय जी अस्वस्थ होने की वजह से कम सक्रिय दिखे और अल्पना जी ने तथा कई और महिला ने सस्वर माना की ब्लॉग जगत महिला ब्लॉगर के लिये सहिष्णु नहीं हैं .
जो बहुत शिद्दत से बदला वो हैं महिला का विद्रोही स्वर जो अब बहुत जल्दी सुनाई देता हैं अगर कहीं भी महिला ब्लॉगर का अपमान होता हैं .{ हां इस दौरान मुझे वंदना से बड़ी जेलसी हुई क्युकी उनको बहुत गाली पड़ी पहले सिर्फ मुझे पड़ती थी , मुझे लगा मेरी सत्ता हिल गयी } .
अदा जी , महफूज जी और दिव्या जी ने ब्लॉग पर कमेन्ट बंद करदिये सो सतीश सक्सेना जी के यहाँ १०० कमेन्ट तक दिखे . वैसे सतीश सक्सेना जी ने अपने बच्चो की शादी कर दी हैं और अपनी बहु को वो अपना बेटा मान चुके हैं और ब्लॉग जगत में शायद सबसे ज्यादा टिपण्णी उसी पोस्ट पर आयी हैं .
अजय झा जी की बुलबुल बिटिया नियम से दांत साफ़ करती हैं और पढ़ती भी हैं मुझे तो लगता हैं वो अवश्य अजय जी का नाम रोशम करेगी , जिसके दांत इतने साफ़ हो वो चमका ही देगी अपने माँ पिता का नाम .
महिला ब्लॉगर जो एक साल पहले तक दोस्त थी वो आज एक दूसरे के ब्लॉग पर कमेन्ट भी नहीं करती हैं ये बदलाव हैं या महज प्रतिक्रया कह नहीं सकती .
मनोज जी , सलिल जी , अनुराग जी , हंसराज जी को पढने और उनसे बात करने का अपना सुख हैं , राधा रमण और संजय जाट जी से भी चैट पर बात हो जाती हैं
महिला ब्लॉगर की नज़र में . मै महिला के खिलाफ लिखती हूँ , पुरुष ब्लॉगर की नज़र में उनके खिलाफ . नज़र अपनी अपनी समझ अपनी अपनी .
हिंदी ब्लॉग लेखन में नित नए ब्लॉग जुड़ रहे हैं पर ग्रुप बाज़ी अब तभी होती हैं जब या तो हिन्दू मुस्लिम दंगा करवाना होता हैं या महिला पुरुष दंगल , बाकी समय स्वस्थ बहस हो जाती हैं .
April 20, 2012
मेरा कमेन्ट
जबसे ब्लॉग जगत से जुड़ा हूँ , ईमानदार लेखन, पढने को लगभग तरस से गए !
अगर किसी की तारीफ़ करनी हो तो बाकी सबको नीचा दिखाने की क़ोई जरुरत नहीं होती हैं
आप को क्या अच्छा लगता हैं आप वो पढते हैं
आप की इन पंक्तियों ने मुझे अनूप शुक्ल की चिटठा चर्चा की याद दिला दी जहां उन्होने कहा था "विवेक सिंह मुझे इसलिये प्रिय हैं कि उनके जैसी मौलिक सोच वाली कविता /तुकबंदी और कोई किसी के यहां नहीं दिखती मुझे। बहुत कम शब्दों में बिना तामझाम के बात कहने का सलीका विवेक जैसा मुझे और नहीं दिखता फ़िलहाल। "http://chitthacharcha.blogspot.in/2009/09/blog-post_17.html
आप अपनी पसंद ना पसंद के तराजू पर किसी की ईमानदारी को कैसे तौल सकते हैं
दिन मे कितनी ब्लॉग पोस्ट हम मे से क़ोई पढ़ पाता हैं की आकलन कर सके क़ोई क्या और कितना कहां कहां लिख रहा हैं .
किसी की तारीफ़ करिये आप को टीप की बौछार मिलेगी ही पर उसके लिये बाकी सब को कटघरे में खड़ा कर देना कितना सही हैं
अगर किसी की तारीफ़ करनी हो तो बाकी सबको नीचा दिखाने की क़ोई जरुरत नहीं होती हैं
आप को क्या अच्छा लगता हैं आप वो पढते हैं
आप की इन पंक्तियों ने मुझे अनूप शुक्ल की चिटठा चर्चा की याद दिला दी जहां उन्होने कहा था "विवेक सिंह मुझे इसलिये प्रिय हैं कि उनके जैसी मौलिक सोच वाली कविता /तुकबंदी और कोई किसी के यहां नहीं दिखती मुझे। बहुत कम शब्दों में बिना तामझाम के बात कहने का सलीका विवेक जैसा मुझे और नहीं दिखता फ़िलहाल। "http://chitthacharcha.blogspot.in/2009/09/blog-post_17.html
आप अपनी पसंद ना पसंद के तराजू पर किसी की ईमानदारी को कैसे तौल सकते हैं
दिन मे कितनी ब्लॉग पोस्ट हम मे से क़ोई पढ़ पाता हैं की आकलन कर सके क़ोई क्या और कितना कहां कहां लिख रहा हैं .
किसी की तारीफ़ करिये आप को टीप की बौछार मिलेगी ही पर उसके लिये बाकी सब को कटघरे में खड़ा कर देना कितना सही हैं
April 14, 2012
इस कविता का किसी ब्लॉगर से कोई लेना देना नहीं हैं
एक दिन एक डॉक्टर का बेटा
एक सरकारी दफ्तर में
सिफारिश से बन गया कलर्क
बड़ी मुश्किल से
एक नौकरी का जुगाड़ हुआ
वो भी एक सरकारी संस्थान में
ख़ैर
फिर उसने सोचा चलो
तरक्की के लिये
ब्लॉग लिखा जाये
हिंदी की रोटी सेकी जाये
और
ब्लॉग पर हिंदी को प्रमोट किया जाये
इस बहाने एक सरकारी चिट्ठी का
जुगाड़ उसने किया और
हिंदी सेवी होने का तमगा अपने लगा लिया
फिर
अपना जनम सिद्ध अधिकार समझ लिया
जो भी हिंदी मे ब्लॉग पर कुछ भी लिखे
उसकी हिंदी , रचना धर्मिता की आलोचना करना
सच हैं इंसान का मानसिक स्तर
उसके बचपन में ही दिख जाता हैं
वो कहते हैं ना
पूत के पाँव पालने मे ही दिख जाते हैं
वैसे ऐसे लोगो को
संस्कारो की बड़ी चिंता रहती हैं
जो खुद अपने ही माता पिता की
नज़रो में असफल होते हैं
दिस्क्लैमेर
इस कविता का किसी ब्लॉगर से कोई लेना देना नहीं हैं
कमेन्ट करने वाले अपनी सुरक्षा का खुद ध्यान रखे
एक सरकारी दफ्तर में
सिफारिश से बन गया कलर्क
बड़ी मुश्किल से
एक नौकरी का जुगाड़ हुआ
वो भी एक सरकारी संस्थान में
ख़ैर
फिर उसने सोचा चलो
तरक्की के लिये
ब्लॉग लिखा जाये
हिंदी की रोटी सेकी जाये
और
ब्लॉग पर हिंदी को प्रमोट किया जाये
इस बहाने एक सरकारी चिट्ठी का
जुगाड़ उसने किया और
हिंदी सेवी होने का तमगा अपने लगा लिया
फिर
अपना जनम सिद्ध अधिकार समझ लिया
जो भी हिंदी मे ब्लॉग पर कुछ भी लिखे
उसकी हिंदी , रचना धर्मिता की आलोचना करना
सच हैं इंसान का मानसिक स्तर
उसके बचपन में ही दिख जाता हैं
वो कहते हैं ना
पूत के पाँव पालने मे ही दिख जाते हैं
वैसे ऐसे लोगो को
संस्कारो की बड़ी चिंता रहती हैं
जो खुद अपने ही माता पिता की
नज़रो में असफल होते हैं
दिस्क्लैमेर
इस कविता का किसी ब्लॉगर से कोई लेना देना नहीं हैं
कमेन्ट करने वाले अपनी सुरक्षा का खुद ध्यान रखे
April 01, 2012
फिल्मों या उनके प्रोमोज़ में ऐसा-वैसा कुछ दिखे तो दर्शकों को उस पर भी शिकायत दर्ज कराने के लिए भी कोई संस्था होनी चाहिए.
i uploaded एडवरटाइज़िंग स्टैंडर्ड काउंसिल आफ इंडिया link some time back on naari blog and now u given the link here great . such links need to circulated
as regards फिर फिल्मों या उनके प्रोमोज़ में ऐसा-वैसा कुछ दिखे तो दर्शकों को उस पर भी शिकायत दर्ज कराने के लिए भी कोई संस्था होनी चाहिए...अगर पहले से ही ऐसी कोई संस्था है, और किसी पाठक को उस पर जानकारी है तो सबसे अवश्य साझा करें...
i think you can put your objection on this link
http://cbfcindia.gov.in/home.aspx
if you will scroll down the page you will find "be vigilant "tab click that and put your complaint
now bloging is being used for social awareness and gives immense pleasure to see the same
March 21, 2012
नोर्वे में भारतीये दंपत्ति से बच्चे छीने गए -- अनदेखा सच
जब मैने नोर्वे में भारतीये दंपत्ति से बच्चे छीने गए
पोस्ट नारी ब्लॉग पर पोस्ट की थी तो बहुत सावधानी से लिखा था की सब कुछ उतना साफ़ नहीं हैं जितना दिखता हैं । मेरी आशंका निर्मूल नहीं साबित हुई । आज बच्चो की पिता ने खुद कहा हैं वो चाहता हैं की बच्चे नोर्वे में रहे और अब इसके लिये उसने अपनी पत्नी को मनोरोगी कह दिया हैं ।
नारी ब्लॉग पर अपने एक पाठक को जवाब देते हुए मैने कमेन्ट में कहा था
quote
बात केवल कानून की ही नहीं हैं बात ये सोचने की हैं की अगर वहाँ के सोशल डिपार्टमेंट ने इन माँ पिता के खिलाफ शिकायत की हैं { जैसा की कल खबर मे था } और वहाँ की अदालत का फैसला हैं की क्युकी पाया गया हैं की बच्चो के पास ना तो उचित कपड़े थे और ना ही खिलोने और उनके लालन पोषण में उनके माँ पिता सक्षम नहीं थे इस लिये अदालत किसी भी वजह से उनके माँ पिता को ये बच्चे नहीं देगी और बच्चो के एक अंकल { शायद मामा } अब विदेश जा कर इनकी कस्टडी लेगे .
तरुण और राजन जो बात मेने पोस्ट में नहीं लिखी हैं आप दोनों सोच कर देखे बिना किसी इमोशन को बीच में लाकर कहीं ऐसा तो नहीं हैं की बच्चो के माँ पिता ने आर्थिक कारणों से ये सब होने दिया और पिछले ७ महीने से वो बच्चो के प्रति किसी भी खर्चे से मुक्त हैं और अब क्युकी उनको भारत आना हैं तो वो बच्चो की लड़ाई में भारत सरकार की सहायता ले रहे हैं . अगर पूरा घटना कर्म कोई देखे तो केवल माँ के माता पिता का ही टी वी में उल्लेख हैं कही भी दादा दादी की कोई बात नहीं हो रही हैं
हमारे देश में कानून व्यवस्था के चलते बच्चो की सुरक्षा का कोई कानून ही नहीं हैं पर विदेशो में हैं और नोर्वे में सब से मजबूत हैं
राजन बच्चे फोस्टर केयर मे रखने का कारण ही ये था की बच्चो को पूर्ण सुविधा नहीं मिल रही थी
उनके पास सही ढंग के कपड़े नहीं थे और मैने केवल अपनी सोच को विस्तार दिया हैं आप से और तरुण से बात करके .
भारतीयों में मूलभूत सुविधा और बचत का बहुत बड़ा कारण हैं की भारतीये विदेशो मे पसंद ही नहीं किये जाते हैं . लोग मानते हैं की हम पेट काट कर प्रोपर्टी खरीदने वालो में हैं . हम कम सहूलियतो में रह कर पैसा बचाते हैं और अपने बच्चो पर उतना खर्च नहीं करते हैं जो सही हैं [ बस सही और गलत की परिभाषा क्या हैं ये कौन तय करेगा ?? पता नहीं }
unquote
मूल प्रश्न अब भी वही हैं की हम कानून व्यवस्था को कभी नहीं देखते । हम केवल और केवल सामाजिक व्यवस्था को देखते हैं और उसके ढांचे को खुद ही बिगाडते जा रहे हैं । हम झूठ के सहारे अपने गलत काम को जस्टिफाई करते हैं और बहना बनाते हैं की हम परिवार को बचा रहे हैं ।
विदेशो में परिवार रहे या ना रहे पर कानून के जरिये समाज की व्यवस्था सही रहती हैं और बच्चो की सुरक्षा व्यवस्था , वृद्ध की सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा देश का हैं ।
हम कितना अक्षम और सक्षम हैं ये हम को खुद सोचना चाहिये
पोस्ट नारी ब्लॉग पर पोस्ट की थी तो बहुत सावधानी से लिखा था की सब कुछ उतना साफ़ नहीं हैं जितना दिखता हैं । मेरी आशंका निर्मूल नहीं साबित हुई । आज बच्चो की पिता ने खुद कहा हैं वो चाहता हैं की बच्चे नोर्वे में रहे और अब इसके लिये उसने अपनी पत्नी को मनोरोगी कह दिया हैं ।
नारी ब्लॉग पर अपने एक पाठक को जवाब देते हुए मैने कमेन्ट में कहा था
quote
बात केवल कानून की ही नहीं हैं बात ये सोचने की हैं की अगर वहाँ के सोशल डिपार्टमेंट ने इन माँ पिता के खिलाफ शिकायत की हैं { जैसा की कल खबर मे था } और वहाँ की अदालत का फैसला हैं की क्युकी पाया गया हैं की बच्चो के पास ना तो उचित कपड़े थे और ना ही खिलोने और उनके लालन पोषण में उनके माँ पिता सक्षम नहीं थे इस लिये अदालत किसी भी वजह से उनके माँ पिता को ये बच्चे नहीं देगी और बच्चो के एक अंकल { शायद मामा } अब विदेश जा कर इनकी कस्टडी लेगे .
तरुण और राजन जो बात मेने पोस्ट में नहीं लिखी हैं आप दोनों सोच कर देखे बिना किसी इमोशन को बीच में लाकर कहीं ऐसा तो नहीं हैं की बच्चो के माँ पिता ने आर्थिक कारणों से ये सब होने दिया और पिछले ७ महीने से वो बच्चो के प्रति किसी भी खर्चे से मुक्त हैं और अब क्युकी उनको भारत आना हैं तो वो बच्चो की लड़ाई में भारत सरकार की सहायता ले रहे हैं . अगर पूरा घटना कर्म कोई देखे तो केवल माँ के माता पिता का ही टी वी में उल्लेख हैं कही भी दादा दादी की कोई बात नहीं हो रही हैं
हमारे देश में कानून व्यवस्था के चलते बच्चो की सुरक्षा का कोई कानून ही नहीं हैं पर विदेशो में हैं और नोर्वे में सब से मजबूत हैं
राजन बच्चे फोस्टर केयर मे रखने का कारण ही ये था की बच्चो को पूर्ण सुविधा नहीं मिल रही थी
उनके पास सही ढंग के कपड़े नहीं थे और मैने केवल अपनी सोच को विस्तार दिया हैं आप से और तरुण से बात करके .
भारतीयों में मूलभूत सुविधा और बचत का बहुत बड़ा कारण हैं की भारतीये विदेशो मे पसंद ही नहीं किये जाते हैं . लोग मानते हैं की हम पेट काट कर प्रोपर्टी खरीदने वालो में हैं . हम कम सहूलियतो में रह कर पैसा बचाते हैं और अपने बच्चो पर उतना खर्च नहीं करते हैं जो सही हैं [ बस सही और गलत की परिभाषा क्या हैं ये कौन तय करेगा ?? पता नहीं }
unquote
मूल प्रश्न अब भी वही हैं की हम कानून व्यवस्था को कभी नहीं देखते । हम केवल और केवल सामाजिक व्यवस्था को देखते हैं और उसके ढांचे को खुद ही बिगाडते जा रहे हैं । हम झूठ के सहारे अपने गलत काम को जस्टिफाई करते हैं और बहना बनाते हैं की हम परिवार को बचा रहे हैं ।
विदेशो में परिवार रहे या ना रहे पर कानून के जरिये समाज की व्यवस्था सही रहती हैं और बच्चो की सुरक्षा व्यवस्था , वृद्ध की सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा देश का हैं ।
हम कितना अक्षम और सक्षम हैं ये हम को खुद सोचना चाहिये
March 20, 2012
ton or not
सचिन का महा शतक बन गया
तो क्या पता ही था बंगलादेश के खिलाफ या आयरलैंड के खिलाफ ही बनेगा !!!!
तो क्या टीम तो हार ही गयी ?
तो क्या शतक ही तो था ?
अब तो रिटायर होगा ना ??
क़ोई भी जब क़ोई माईल स्टोन यानी मील का पत्थर तक अपने पैरो के निशान बनाता हैं तो उसके पीछे उसके सालो के सपने , उनको पूरा करने का अथक परिश्रम और अपने जीवन की अभिलाषा सब जुड़े होते हैं ।
आज सचिन ने जो मील का पत्थर क्रिकेट के रास्ते पर लगा दिया हैं वहाँ जब क़ोई और पहुँच जाए और उसको छू ले तो बस वही अधिकारी हैं सचिन से आगे जाने का ।
कभी पढ़ा था
मंजिल तक पहुचना जितना जरुरी हैं उस से भी ज्यादा जरुरी हैं सही और सच्चे रास्ते पर चल कर मंजिल तक पहुचना । सचिन का नाम आज तक किसी मैच फिक्सिंग या घोटाले में नहीं सूना । क्रिकेट के प्रति उसका जूनून आज उसको उस मुकाम पर ले आया जहां ये सब प्रशन बेमानी हैं की किसके खिलाफ शतक लगा , कितने दिन बाद लगा , अब रिटायर हो जाये इत्यादि ।
एक बार शाहरुख़ खान ने अपने बड बोले पन की आदत के चलते अमिताभ बच्चन पर टीका टिपण्णी करते हुए कुछ कहा था , वो याद नहीं हैं हां अमिताभ का दिया हुआ जवाब जरुर याद हैं
अमिताभ ने कहा था पहले शाहरुख़ 60 साल के हो जाए , और उनको काम मिलता रहे तब मै रहा तो उनके वक्तव्य पर कुछ कहूंगा ।
सचिन और अमिताभ को देख कर लगता हैं
सपने देखो और उनको पूरा होने की कामना भी करो , उनको पूरा करने के लिये अपनी पूरी ताकत भी लगा दो । फिर हर सपना जरुर पूरा होगा ।
सचिन को १०० शतक की बधाई
तो क्या पता ही था बंगलादेश के खिलाफ या आयरलैंड के खिलाफ ही बनेगा !!!!
तो क्या टीम तो हार ही गयी ?
तो क्या शतक ही तो था ?
अब तो रिटायर होगा ना ??
क़ोई भी जब क़ोई माईल स्टोन यानी मील का पत्थर तक अपने पैरो के निशान बनाता हैं तो उसके पीछे उसके सालो के सपने , उनको पूरा करने का अथक परिश्रम और अपने जीवन की अभिलाषा सब जुड़े होते हैं ।
आज सचिन ने जो मील का पत्थर क्रिकेट के रास्ते पर लगा दिया हैं वहाँ जब क़ोई और पहुँच जाए और उसको छू ले तो बस वही अधिकारी हैं सचिन से आगे जाने का ।
कभी पढ़ा था
मंजिल तक पहुचना जितना जरुरी हैं उस से भी ज्यादा जरुरी हैं सही और सच्चे रास्ते पर चल कर मंजिल तक पहुचना । सचिन का नाम आज तक किसी मैच फिक्सिंग या घोटाले में नहीं सूना । क्रिकेट के प्रति उसका जूनून आज उसको उस मुकाम पर ले आया जहां ये सब प्रशन बेमानी हैं की किसके खिलाफ शतक लगा , कितने दिन बाद लगा , अब रिटायर हो जाये इत्यादि ।
एक बार शाहरुख़ खान ने अपने बड बोले पन की आदत के चलते अमिताभ बच्चन पर टीका टिपण्णी करते हुए कुछ कहा था , वो याद नहीं हैं हां अमिताभ का दिया हुआ जवाब जरुर याद हैं
अमिताभ ने कहा था पहले शाहरुख़ 60 साल के हो जाए , और उनको काम मिलता रहे तब मै रहा तो उनके वक्तव्य पर कुछ कहूंगा ।
सचिन और अमिताभ को देख कर लगता हैं
सपने देखो और उनको पूरा होने की कामना भी करो , उनको पूरा करने के लिये अपनी पूरी ताकत भी लगा दो । फिर हर सपना जरुर पूरा होगा ।
सचिन को १०० शतक की बधाई
March 14, 2012
मेरा कमेन्ट
इस पोस्ट को समझने के लिये
मेरी कल की पोस्ट यहाँ देखी जा सकती हैं
अविनाश वाचस्पति ने कहा…
अविनाश वाचस्पति
आप अपने को लेखक मानने का भ्रम पाल कर जी रहे हैं , जीते रहे
जेंडर बायस युक्त हैं आप का कमेन्ट और आप शायद इस से भी अनभिज्ञ हैं की इस प्रकार के कमेन्ट देना अब कानून अपराध हैं जहां आप पूरे नारी जाति पर ऊँगली उठा रहे हैं
जिसका ब्लॉग हैं वो जवाब देने में समर्थ हैं और क्युकी उसके ब्लॉग पर मोडरेशन के बाद भी ये कमेन्ट पुब्लिश किया गया हैं तो इसमे उसकी सहज सहमती हैं मै जानती हूँ . इसको कायरता भी कहते हैं
मेरी कल की पोस्ट यहाँ देखी जा सकती हैं
अविनाश वाचस्पति ने कहा…
Naari ho ya aari ho. Aaptti darz karne ke bajay rachna karna seekho. Varna to abhiman karti rahna, ghamand se phool kar kuppa ho jana, aisi neeyat hai ti niyati yahi rahegi. Saari dunia ko apne tarikon ke pallu se baandh kar kyon chalana chahati ho ???
अविनाश वाचस्पति
आप अपने को लेखक मानने का भ्रम पाल कर जी रहे हैं , जीते रहे
Netiquette से आप अनभिज्ञ हैं जानती हूँ .
जेंडर बायस युक्त हैं आप का कमेन्ट और आप शायद इस से भी अनभिज्ञ हैं की इस प्रकार के कमेन्ट देना अब कानून अपराध हैं जहां आप पूरे नारी जाति पर ऊँगली उठा रहे हैं
जिसका ब्लॉग हैं वो जवाब देने में समर्थ हैं और क्युकी उसके ब्लॉग पर मोडरेशन के बाद भी ये कमेन्ट पुब्लिश किया गया हैं तो इसमे उसकी सहज सहमती हैं मै जानती हूँ . इसको कायरता भी कहते हैं
March 13, 2012
अतिथि- तुम कब जाओगे..समीर जी मेरी आपत्ति दर्ज करे
पहली बार आप के आलेख पर आपत्ति दर्ज करा रही हूँ ।
आप का निष्कर्ष "विदेश में रहने वालों के लिए यह मंजर बहुत आम है- यहाँ वो आयें तो अतिथि और हम वहाँ जायें तो डॉलर कमाने वाले!! दोनों तरफ से लूजर और यूँ भी अपनी जमीन से तो लूजर हैं ही!!!" निहायत छोटी सोच का परिचायक लगा
क़ोई भी भारत से आप के यहाँ अगर आता हैं तो आप से पूछ कर ही आता होगा और क्युकी आप आप ने कहा ये आम बात हैं की भारतीये विदेशो में बसे भारतीयों के यहाँ जा कर अतिथि बन जाते हैं तो ये पहला प्रकरण नहीं होसकता । यानी आप स्वयं भी कहीं ना कहीं इसके लिये जिम्मेदार हैं । आप को जब पता हैं भारत से आने वाले गरीब टुट पुन्जिये हैं तो आप को उन्हे न्योता देने की जगह उन से सम्बन्ध ही तोड़ लेना चाहिये ।
हम कितना भी गरीब सही पर जमीर अभी जिन्दा हैं समीर भाई , आशा हैं नाराज नहीं होगे और हो तो क्षमा कर दे पर ये कमेन्ट देना जरुरी था ।
मै अपनी बात भी बता दूँ की मै तो भारत में भी किसी रिश्ते दार के घर नहीं रुकती , होटल में ही रहना पसंद करती हूँ
कनाडा आती तब भी वहीँ करती ।
मेरा कमेन्ट यहाँ
आप का निष्कर्ष "विदेश में रहने वालों के लिए यह मंजर बहुत आम है- यहाँ वो आयें तो अतिथि और हम वहाँ जायें तो डॉलर कमाने वाले!! दोनों तरफ से लूजर और यूँ भी अपनी जमीन से तो लूजर हैं ही!!!" निहायत छोटी सोच का परिचायक लगा
क़ोई भी भारत से आप के यहाँ अगर आता हैं तो आप से पूछ कर ही आता होगा और क्युकी आप आप ने कहा ये आम बात हैं की भारतीये विदेशो में बसे भारतीयों के यहाँ जा कर अतिथि बन जाते हैं तो ये पहला प्रकरण नहीं होसकता । यानी आप स्वयं भी कहीं ना कहीं इसके लिये जिम्मेदार हैं । आप को जब पता हैं भारत से आने वाले गरीब टुट पुन्जिये हैं तो आप को उन्हे न्योता देने की जगह उन से सम्बन्ध ही तोड़ लेना चाहिये ।
हम कितना भी गरीब सही पर जमीर अभी जिन्दा हैं समीर भाई , आशा हैं नाराज नहीं होगे और हो तो क्षमा कर दे पर ये कमेन्ट देना जरुरी था ।
मै अपनी बात भी बता दूँ की मै तो भारत में भी किसी रिश्ते दार के घर नहीं रुकती , होटल में ही रहना पसंद करती हूँ
कनाडा आती तब भी वहीँ करती ।
मेरा कमेन्ट यहाँ
March 10, 2012
समय से बड़ा कुछ नहीं
हिंदी ब्लॉग जगत की रीत हैं निराली
हास्य और फूहड़ हास्य में अंतर जो आज बता रहे हैं
वही आज से बस एक साल पहले
फूहड़ हास्य के लिये चर्चित ब्लॉग पर
टीप खूब दिया करते थे
उन आयोजनों में जहां
फूहड़ हास्य को समानित किया जाता था
ब्लॉग मीटिंग कहते थे
व्यंग कहते थे उस लेखन को जहां
"रचना " पर होती थी
अश्लील पोस्ट और कविता
आज पुरजोर तरीके से
वो अपनी आपत्ति दर्ज करा रहे हैं
अपने को साहित्यकार बता कर
हिंदी कविता / हास्य को
बचाने की कोशिश कर रहे हैं
कहीं किसी ने आप से पहले भी
हिंदी ब्लॉग जगत में यही कहा था
उसका मज़ाक कभी आप ने उड़ाया था
ये आज आप को याद भी नहीं हैं
क़ोई बात नहीं
समय से बड़ा कुछ नहीं
वही सबको समझाता हैं
और सच एक ना एक दिन
सबके सामने आता हैं
हास्य और फूहड़ हास्य में अंतर जो आज बता रहे हैं
वही आज से बस एक साल पहले
फूहड़ हास्य के लिये चर्चित ब्लॉग पर
टीप खूब दिया करते थे
उन आयोजनों में जहां
फूहड़ हास्य को समानित किया जाता था
ब्लॉग मीटिंग कहते थे
व्यंग कहते थे उस लेखन को जहां
"रचना " पर होती थी
अश्लील पोस्ट और कविता
आज पुरजोर तरीके से
वो अपनी आपत्ति दर्ज करा रहे हैं
अपने को साहित्यकार बता कर
हिंदी कविता / हास्य को
बचाने की कोशिश कर रहे हैं
कहीं किसी ने आप से पहले भी
हिंदी ब्लॉग जगत में यही कहा था
उसका मज़ाक कभी आप ने उड़ाया था
ये आज आप को याद भी नहीं हैं
क़ोई बात नहीं
समय से बड़ा कुछ नहीं
वही सबको समझाता हैं
और सच एक ना एक दिन
सबके सामने आता हैं
February 20, 2012
शिवरात्रि देवो के देव महादेव - स्तुति
नमामिशमीशान निर्वाण रूपं।
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।।
निजं निर्गुणं निर्किल्पं निरीहं।
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहं।।
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं।
गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशं।।
करालं महाकाल कालं कृपालं।
गुणागार संसारपारं नतोहं।।
तुषाराद्रि संकाश गौरं गंभीरं।
मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।।
सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये।।1।।
श्रीशैलशृंगे विबुधातिसंगे तुलाद्रितुंगेऽपि मुदा वसन्तम्।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम्।।2।।
अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्।।3।।
कावेरिकानर्मदयो: पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय।
सदैव मान्धातृपुरे वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीडे।।4।।
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसन्तं गिरिजासमेतम्।
सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि।।5।।
याम्ये सदंगे नगरेतिऽरम्ये विभूषितांगम् विविधैश्च भोगै:।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये।।6।।
महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।
सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै: केदारमीशं शिवमेकमीडे।।7।।
सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरीतीरपवित्रदेशे।
यद्दर्शनात् पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्रयम्बकमीशमीडे।।8।।
सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यै:।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि।।9।।
यं डाकिनीशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं तं शंकरं भक्तहितं नमामि।।10।।
सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम्।
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये।।11।।
लापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन् समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम्।
वन्दे महोदारतरं स्वभावं घृष्णेश्वराख्यं शरणं प्रपद्ये॥ 12॥
ज्योतिर्मयद्वादशलिंगकानां शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या फलं तदालोक्य निजं भजेच्च॥ 13॥
साभार
सभी को शिवरात्रि की बधाई । जिस धर्म के रक्षक के
गले में सर्प हो , मस्तक पर गंगा ,
हाथ में त्रिशूल
आसन हो सिंह का
और वाहन हो बैल का
उस धर्म को नष्ट करने का सोचने वाले फिर सोचे ।
हिन्दू सहन शील हैं रहेगा पर कमजोर और डरपोक , अरे ये भ्रम ना पाले
ॐ हर हर महादेव
गले में सर्प हो , मस्तक पर गंगा ,
हाथ में त्रिशूल
आसन हो सिंह का
और वाहन हो बैल का
उस धर्म को नष्ट करने का सोचने वाले फिर सोचे ।
हिन्दू सहन शील हैं रहेगा पर कमजोर और डरपोक , अरे ये भ्रम ना पाले
ॐ हर हर महादेव
February 13, 2012
" बी माई वैलेंटाईन " कहने से पहले ज़रा रुके वरना कहीं हंसी के पात्र ना बन जाए आप
वैलेंटाईन डे
क्या आप जानते हैं की जिस साल फरवरी में २९ दिन होते हैं उस साल " बी माई वैलेंटाईन " का आवाहन पुरुष नहीं स्त्री करती हैं
हर चार साल में एक बार स्त्री को अवसर होता हैं अपने प्यार का इजहार करने के लिये उस व्यक्ति से जिस को वो बी माई वैलेंटाईन कहना चाहती हो
बसंत प्रेम का पर्व हैं और भारत में मनाया जाता हैं
February 10, 2012
हाँ नहीं तो
आज एक हिंदी ब्लॉग पढ़ कर पता चला की अगर हम कहीं ये लिखते हैं की " अभिन्न मित्र ने कहा " तो उसका अर्थ होता हैं की जिसके बारे में लिखा गया हैं वो जिसने लिखा हैं उसकी अभिन्न मित्र नहीं हैं ।
कमाल हैं लोग कितनी आसानी से अपनी मित्रताओ को नकार देते हैं ।
जब मन हुआ मित्र बन गए । जब मन हुआ कह दिया ऐसी तो क़ोई मित्रता थी ही नहीं ।
जब मै लिखती थी की ब्लॉग पर मित्र इत्यादि नहीं लिखना चाहिये तब जो लोग परिवार की दुहाई देते थे और आज वही लोग किसी का मित्र कहे जाने पर मित्रता को ही नकार रहे हैं ।
कमेन्ट बंद हैं क्यूँ पता नहीं म्यूजिक जो बजाया सुनाया जा रहा हैं । बेचारे मित्र जो सम्मान देते नहीं थकते आज मित्र ही नहीं हैं । हाँ नहीं तो ।
डिस्क्लेमर
आज कल नया धारावाहिक चल रहा हैं सोनी टी वी पर मोनिया ये हाँ नहीं तो वही से सीखा हैं जी कहीं क़ोई भ्रम ना हो इस लिये डिसक्लेम करदिये
अभिन्न
अ + भिन्न
भिन्न का अर्थ अलग यानी भिन्नता लिये हुए
अ यानी जुड़ा हुआ
कमाल हैं लोग कितनी आसानी से अपनी मित्रताओ को नकार देते हैं ।
जब मन हुआ मित्र बन गए । जब मन हुआ कह दिया ऐसी तो क़ोई मित्रता थी ही नहीं ।
जब मै लिखती थी की ब्लॉग पर मित्र इत्यादि नहीं लिखना चाहिये तब जो लोग परिवार की दुहाई देते थे और आज वही लोग किसी का मित्र कहे जाने पर मित्रता को ही नकार रहे हैं ।
कमेन्ट बंद हैं क्यूँ पता नहीं म्यूजिक जो बजाया सुनाया जा रहा हैं । बेचारे मित्र जो सम्मान देते नहीं थकते आज मित्र ही नहीं हैं । हाँ नहीं तो ।
डिस्क्लेमर
आज कल नया धारावाहिक चल रहा हैं सोनी टी वी पर मोनिया ये हाँ नहीं तो वही से सीखा हैं जी कहीं क़ोई भ्रम ना हो इस लिये डिसक्लेम करदिये
अभिन्न
अ + भिन्न
भिन्न का अर्थ अलग यानी भिन्नता लिये हुए
अ यानी जुड़ा हुआ
February 07, 2012
ईश्वर से प्रार्थना हैं की वो युवराज सिंह को कैंसर से शीघ्र मुक्ति दे
ईश्वर से प्रार्थना हैं की वो युवराज सिंह को कैंसर से शीघ्र मुक्ति दे
February 02, 2012
क़ोई ब्लॉगर जो विदेश में हैं ज़रा दो तीन ब्लॉग खोल कर देखे
ब्लागस्पाट.कॉम से ब्लागस्पाट.इन यानी अब ये साफ़ पता चल जाएगा की ब्लॉग किस देश के सर्वर पर हैं अभिव्यक्ति की स्वंत्रता ख़तम होगयी हैं क्युकी अब बहुत आसानी से किसी को भी पता चल जाएगा की ब्लॉग लेखक किस देश का निवासी हैं और उस देश के कानून के अन्दर उस पर कार्यवाही करने की स्वंत्रता अब हो गयी हैं ।
यानी अगर आप को भ्रम हैं की क़ोई ब्लोगर थाईलैंड में रहता हैं और वहाँ से कमेन्ट करता है तो आप उसके ब्लॉग का यू आर अल चेक कर ले अगर वो .इन हैं तो ब्लॉगर भारत में हैं ना की थाईलैंड में ।
लीजिये सोचा अब हम तकनीक के शेर्लोक होम हो गये हैं सो झट से कुछ जाने हुए विदेशी ब्लॉगर यानी समीर के ब्लॉग पर पहुच गए लेकिन वहां का नज़ारा भी ब्लागस्पाट.इन ।
फिर सोचा शायद गूगल इन हिंदी भाषियों को अलग सर्वर पर पहुचा दिया तो अपने इंग्लिश ब्लॉग सब .ब्लागस्पाट.इन ही हैं ।
फिर खबर पढी की आप अगर इंडिया में हैं और क़ोई ब्लॉग खोलते हैं तो वो आप को ब्लागस्पाट.कॉम की जगह ब्लागस्पाट.इन दिखेगा
क़ोई ब्लॉगर जो विदेश में हैं ज़रा दो तीन ब्लॉग खोल कर देखे जैसे ये ब्लॉग या समीर का ब्लॉग जो मुझे तो .इन दिख रहे और बताये क्या उनको .कॉम दिख रहे हैं या क्या दिख रहे हैं
जवाबो के इंतज़ार में
यानी अगर आप को भ्रम हैं की क़ोई ब्लोगर थाईलैंड में रहता हैं और वहाँ से कमेन्ट करता है तो आप उसके ब्लॉग का यू आर अल चेक कर ले अगर वो .इन हैं तो ब्लॉगर भारत में हैं ना की थाईलैंड में ।
लीजिये सोचा अब हम तकनीक के शेर्लोक होम हो गये हैं सो झट से कुछ जाने हुए विदेशी ब्लॉगर यानी समीर के ब्लॉग पर पहुच गए लेकिन वहां का नज़ारा भी ब्लागस्पाट.इन ।
फिर सोचा शायद गूगल इन हिंदी भाषियों को अलग सर्वर पर पहुचा दिया तो अपने इंग्लिश ब्लॉग सब .ब्लागस्पाट.इन ही हैं ।
फिर खबर पढी की आप अगर इंडिया में हैं और क़ोई ब्लॉग खोलते हैं तो वो आप को ब्लागस्पाट.कॉम की जगह ब्लागस्पाट.इन दिखेगा
क़ोई ब्लॉगर जो विदेश में हैं ज़रा दो तीन ब्लॉग खोल कर देखे जैसे ये ब्लॉग या समीर का ब्लॉग जो मुझे तो .इन दिख रहे और बताये क्या उनको .कॉम दिख रहे हैं या क्या दिख रहे हैं
जवाबो के इंतज़ार में
February 01, 2012
ब्लागस्पाट .कॉम अब ब्लागस्पाट.इन why ????
ब्लागस्पाट.कॉम अब ब्लागस्पाट.इन नज़र आ रहा हैं । क्या फायदा हैं और क्या नुक्सान तकनीक के जानकार कुछ इस पर राय दे । काफी दिन से गूगल डोमेन .इन पर फ्री वेबसाइट देने की बात कह रहा था , रजिस्टर करने के बाद भी कुछ नहीं हुआ । लोग इन नहीं होता । आज अपने ब्लॉग का .कॉम जब .इन दिखा तो सोचा लगता हैं फ्री का ज़माना ख़तम हो रहा हैं ।
सरकार गूगल की फ्रीडम ख़तम करने की बात कर रही हैं तो गूगल जी कॉम से इन कर दिये ब्लागस्पाट को ।
सरकार गूगल की फ्रीडम ख़तम करने की बात कर रही हैं तो गूगल जी कॉम से इन कर दिये ब्लागस्पाट को ।
January 05, 2012
क्या आप को लगता हैं अब शाकाहारी खाने के शौक़ीन ज्यादा बाहर जा कर खाना पसंद करेगे ?
क्या आप जानते हैं की भारतीये होटल अब वेजिटेरियन खाने को ज्यादा अहमियत देने वाले हैं । कारण बड़ा सीधा हैं एक सर्वे ने बताया हैं की जिन लोगो के पास ज्यादा पैसा हैं यानि खरीदने की ज्यादा ताकत हैं वो सब ज्यादातर वेजिटेरियन हैं और उन में से बहुत से ऐसे हैं जो होटल में केवल इस लिये खाना नहीं खाते हैं क्युकी वहाँ नॉन वेजिटेरियन खाना भी बनता हैं । अब बहुत से होटलों ने केवल वेजिटेरियन खाना बनाने और बेचने की सोची हैं ।कुछ होटल अपने यहाँ अलग से शाकाहारी खाने का काउंटर भी लगाने की सोच रहे हैं ।
क्या आप को लगता हैं अब शाकाहारी खाने के शौक़ीन ज्यादा बाहर जा कर खाना पसंद करेगे ?
शाकाहारी खाना सेहत के लिये फायदेमंद हैं ये सब जानते हैं । मेरा मानना हैं खाना अपनी पसंद का ही खाना चाहिये लेकिन नॉन वेज खाने के साथ जुड़ी जीव ह्त्या मुझे उस खाने को खाने से हमेशा रोकती हैं ।
लोग वेज नॉन वेज को हिन्दू मुस्लिम से जोड़ कर एक दूसरे पर तोहमत लगाते हैं , विज्ञान खाने के लिये जीव ह्त्या को कभी सही तो कभी गलत मानता हैं , गलत तब जब जिसको मारा जा रहा हैं वो प्रजाति विलुप्त हो रही हो ।
आज कल दिल्ली में गिलहरी का meat खाने के शौक़ीन भी पाए जा रहे हैं । सोच कर भी मन व्यथित होता हैं जब इस प्रकार से जीव ह्त्या होती हैं ।
जो लोग विदेशो में जा कर बर्गर , हॉट डॉग इत्यादि बड़े शौक से खाते हैं अगर कभी ध्यान दे तो पायेगे वो सब गाय के मॉस से ही बनते हैं । खाने से पहले एक बार काउंटर पर पूछ ले तो आप को भ्रम नहीं रहेगा ।
नॉन वेज खाने वाले मानते हैं नॉन वेज नॉन वेज होता हैं किसी भी जीव का हो क़ोई फरक नहीं पड़ता हैं ।
जापान में शायद ही क़ोई सलाद हो जिसमे मछली ना पड़ती हो , वहाँ मछली वेज मानी जाति हैं । बंगकोक में बीफ को वेज मानते हैं और वेज बर्गर मांगने पर मेक्डोनाल्ड ने मुझ बीफ बर्गर दिया था पर वहाँ की मेनेजर ने मुझे खाने से रोका था और कहा था की आप भारतीये हैं ये आप ना खाये ।
आज के लिये इतना ही
क्या आप को लगता हैं अब शाकाहारी खाने के शौक़ीन ज्यादा बाहर जा कर खाना पसंद करेगे ?
शाकाहारी खाना सेहत के लिये फायदेमंद हैं ये सब जानते हैं । मेरा मानना हैं खाना अपनी पसंद का ही खाना चाहिये लेकिन नॉन वेज खाने के साथ जुड़ी जीव ह्त्या मुझे उस खाने को खाने से हमेशा रोकती हैं ।
लोग वेज नॉन वेज को हिन्दू मुस्लिम से जोड़ कर एक दूसरे पर तोहमत लगाते हैं , विज्ञान खाने के लिये जीव ह्त्या को कभी सही तो कभी गलत मानता हैं , गलत तब जब जिसको मारा जा रहा हैं वो प्रजाति विलुप्त हो रही हो ।
आज कल दिल्ली में गिलहरी का meat खाने के शौक़ीन भी पाए जा रहे हैं । सोच कर भी मन व्यथित होता हैं जब इस प्रकार से जीव ह्त्या होती हैं ।
जो लोग विदेशो में जा कर बर्गर , हॉट डॉग इत्यादि बड़े शौक से खाते हैं अगर कभी ध्यान दे तो पायेगे वो सब गाय के मॉस से ही बनते हैं । खाने से पहले एक बार काउंटर पर पूछ ले तो आप को भ्रम नहीं रहेगा ।
नॉन वेज खाने वाले मानते हैं नॉन वेज नॉन वेज होता हैं किसी भी जीव का हो क़ोई फरक नहीं पड़ता हैं ।
जापान में शायद ही क़ोई सलाद हो जिसमे मछली ना पड़ती हो , वहाँ मछली वेज मानी जाति हैं । बंगकोक में बीफ को वेज मानते हैं और वेज बर्गर मांगने पर मेक्डोनाल्ड ने मुझ बीफ बर्गर दिया था पर वहाँ की मेनेजर ने मुझे खाने से रोका था और कहा था की आप भारतीये हैं ये आप ना खाये ।
आज के लिये इतना ही
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